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Wednesday, 13 June 2012

''अकबर द्वारा माँ ज्वाला जी की परीक्षा लेना ''

''अकबर द्वारा माँ ज्वाला जी की परीक्षा  लेना ''
जब से अकबरने ध्यानू भग्त जीके घोड़े को जिन्दा हुएदेखा है ,अकबर परेशान है ,वार वार उसशक्ति के वारे में सोचता  है ।ध्यानू भग्त जी ने अपनी दिल्ली से आगे यात्रा आरम्भ की ,लेकिन अकबर भीबहुत सारी सेना लेकर ध्यानू भग्त के पीछे-पीछे मातारानी  की परीक्षा लेने केलिए आता है ।जब अकबर ने माँ जोतांवाली के दरवार आकर देखा माँ की जोतें बिना तेल बिना बाती के जग रही है तो उन्हें बुझाने  लिए एक नहर का पानी    लाकर जोतों में  डाला लेकिन पानी के बीच भी जोतें जगी रही वो न बुझी ।अकबर ने फिर जोतों को बुझाने के लिए जोतों के ऊपर लोहे का तवा चड़ा दिया ,लेकिन माँ जोतां वाली तवे को फाड़ कर बाहर आ गई ।अकबर ये सब देख कर माता राणी के चरणों में गिर पड़ा और माफ़ी मांग कर अपनी भूल बख्शाने लगा ।माता राणी ने अकबर को माफ़ किया लेकिन अकबर ने माता राणी को भेंट करने के लिए सवा मन सोने का छत्र बनवाया ।
जब भेंट करने लगा तो मन में भावआया कि इतना बड़ा छत्र शायद ही किसी ने भेंट किया हो ।अहंकारके भाव को देख कर माता राणी ने वो छत्रऐसी धातु का बना दिया जो अब न सोने का ,न चांदी का ,न पीतल का और न कांसे का है। आज भी वो छत्र औरवो तवा  माँ जोतां वाली के दरवारमें बिराजमान है। आप दर्शन कर सकते है ।
                                                                                  जय  माता दी    

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