एक वार जब ध्यानू भग्त जी माँ ज्वाला जी के दर्शन करने शहर ज्वालामुखी आए तो दर्शन करके इन्ही कागड़ा घाटियों में माँ ज्वाला जी के धाम का प्रचार करता हुआ भ्रमण करने लगा और भ्रमण करते करते आकर नादौन शहर की धरती पर पहुँच गया जो कि ज्वालामुखी शहर से दक्षिण दिशा की तरफ 12किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।यहाँ व्यास नदी के किनारे एक कुटिया बना करके रहने लगे और अपने जीवन के अन्तिम 20साल इसी नादौन शहर की धरती पर व्यतीत किए ।लेकिन यहाँ रहते हुए ध्यानूज़ी का हररोज़ का नियम था व्यास नदी में स्नान करना और पैदल जाके माँ ज्वालाजी के दर्शन करना । यही पर रहते हुए ही मातारानी ने ध्यानू जी को तारारानी की कथा का प्रचार करने का आदेश दिया था ।
एक दिन इसी नादौन शहर की धरती पर ध्यानू भग्त जी अपना पंचभौतिक शरीर छोड़ कर माँ भगवती के चरणों में ब्रह्मलीन हो गये , आज भी ध्यानूज़ी की समाधि नादौन शहर की धरती पर मौजूद है ।
सन्तों महन्तों का कहना है कि जिस प्रकार माँ वैष्णो देवी की यात्रा जबतक मातारानी के दर्शन करने के बाद भैरों बाबा जी के दर्शन न किए जाएँ , माँ वैष्णो देवी की यात्रा सम्पूर्ण नही कहलाती उसी प्रकार जबतक माँ ज्वाला जीके दर्शन करने के बाद ध्यानूज़ी की समाधि के उपर शीश न नवाया जाए , माँ ज्वाला जी की यात्रा भी सम्पूर्ण नही कहलाती है ।
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