Sponcered Links

Wednesday, 17 October 2012

'' चन्द्रघंटा ''

                                                                         3. चन्द्रघंटा
(ध्यान मंत्र)                                                                     
                          पिण्डजप्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | 
                          प्रसादं तुनते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||
 
अर्थात्- मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टा है | इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचन्द्र है | इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है | इनके दस हाथ है | इनके दस हाथों में शस्त्र तथा बाण आदि शस्त्र विभूषित है | इनका वाहन सिंह है | इनकी मुद्रा ; युद्ध के लिए अद्यत रहने की होती है | इनके घंटे की सी भयानक चण्डध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव डरते रहते है |
जप मंत्र
                                ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघण्टायै नमः
महत्व्- इनकी आराधना से साधक में वीरता, निर्भरता के साथ सौम्यता व विनम्रता का विकास भी होता है | उसके मुख, नेत्र व सम्पूर्ण काया में कांति गुण की वृद्धि होती है | स्वर में माधुर्य का समावेश होता है | 
मार्कंडेय पुराण के अनुसार तृतीय नवरात्र की देवी का नाम चंद्रघंटा देवी है, निगम ग्रंथों में निहित कथा के अनुसार जब भगवान् शिव ने देवी को समस्त विद्ययों का ज्ञान प्रदान करना शुरू किया तो देवी उस ज्ञान का तप के लिए प्रयोग करने लगी, लगातार आगम निगमों का ज्ञान प्राप्त कर देवी महातेजस्विनी हो गयी व सभी कलाओं सहित तेज पुंज बन योगमाया के रूप में स्थित हो गयी, तब प्रसन्न हो कर शिव ने देवी को अपने साथ एकाकार कर अर्धनारीश्वर रूप धरा, उस समय देवी पार्वती जी को अपने वास्तविक स्वरुप का बोद्ध हुआ, तब शिव से अलग हो आकाश में देवी ने सिंह पर स्वर हो दस भुजाओं वाला एक अद्भुत रूप धारण किया, हाथों में कमल पुष्प धनुष त्रिशूल,गदा, तलवार सहित वर अभी मुद्रा धारण की, क्योंकि देवी तपस्विनी रूप में थी तो एक हाथ में माला और एक हाथ में उनहोंने कमंडल धारण कर लिया, सभी ऋषि मुनि देवता देवी के तेज को सः नहीं पा रहे थे तो भगवान शिव ने चन्द्रमा को देवी के शीर्षस्थान पर बिराजने को कहा, जिससे उनका तेजस्वी स्वरूप अब और भी सुन्दर तथा शीतल हो गया, तब सभी देवताओं नें देवी की जय जयकार की तथा उनको चंद्रघंटा देवी के नाम से पुकारा,जो भी भक्त देवी के ऐसे दिव्य रूप की पूजा करता है, वो एक साथ संसार में भी तथा मुक्ति के मार्ग पर भी एक ही समय चल सकता है, भौतिक संसार में तो आगे बढ़ता ही है साथ अध्यात्म में भी शिखर पर रहता है, सभी विद्यार्थियों, साधको, भक्तों को ऐसी देवी के दर्शनों से महासिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, ऐसे व्यक्ति को अहंकार रहित ज्ञान प्राप्त होता है, देवी को पूजने वाले को सवयम देवता भी पूजते हैंआकाश मंडल में चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण करने के कारण देवी का नाम पड़ा चंद्रघंटा, महाशक्ति चंद्रघंटा माँ पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सर्व कलाओं को धारण करने से उत्पन्न हुआअपनी सभी कलाओं को अध्यात्म धर्म सहित धारण करने के कारण ही देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है, देवी के उपासक एक साथ ही संसार में जीते हुये परम मुक्ति के मार्ग पर भी चल सकते है, जिस कारण देवी की बड़ी महिमा गई जाती है, देवी कृपा से ही भक्त को संसार के सभी सुख तथा मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए तीसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता हैयदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें ।
                     जय माता की . .


No comments:

Post a Comment