7 कालरात्रि
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
नवरात्र का सातवां दिन मां कालरात्रि का दिन होता है। मां के इस सातवें
स्वरूप की आराधना व्यक्ति के भीतर की तामसी शक्तियों का नाश करती है। तामसी
प्रवृत्तियों की समाप्ति के साथ ही व्यक्ति के भीतर कल्याणकारी गुणों का
प्रादुर्भाव करता है।मां का यह रूप वर्ण रात्रि के गहन अंधकार की तरह
काला है। उनके गले में बिजली की भांति चमकने वाली माला है जो ब्राह्मण्ड की
तरह गोल है। इस माला में हर पल एक ज्योति जलती रहती है जो मानव जीवन का
सही राह दिखाती है।मां कालरात्रि दुर्गा माता का सांतवा रूप है। मां
शक्ति का यह रूप अपने भक्तों को बुरे कर्मो से दूर रहकर अच्छे व सदगुणों के
निकट ले जाता है। कहा जाता है कि नवरात्र के सातवें दिन जो भी व्यक्ति
सच्चे हृदय से मां की आराधना करता है उसके भीतर के सभी बुरी व तामसी
शक्तियां नष्ट हो जाती हैं। मां अपने भक्तों को विपत्तियों व कठिनाइयों से
जूझने की क्षमता प्रदान करती है तथा वास्तविक व ईश्वरीय सुख की अनुभूति कराती है।मां का यह रूप देखने में भयावह लगता है जो व्यक्ति के भीतर एक डर भी पैदा
करता है लेकिन यह डर उसे अच्छे व सदकर्मों की ओर ले जाता है। यह रूप सदैव
शुभ फल देताहै। मां के इस स्वरूप को शुभंकरी भी कहा जाता है। कालरात्रि
दुष्टों व शत्रुओं का संहार करती है। काले रंग वाली केशों का फैला कर रखने
वाली चार भुजाओं वाली दुर्गा का यह वर्ण और वेश में अद्र्धनारीश्वर शिव की
तांडव मुद्रा में नजर आती है।मां की आखों से अग्नि की वर्षा होती है।
एक हाथ में दुष्टों की गर्दन तथा दूसरे हाथ में खड्ग लिए मां कालरात्रि
पापियों का नाश कर रही है। मां की सवारी गधर्व यानि गधा है जो समस्त जीव
जन्तुओं में सबसे परिश्रमी है। मां का यह स्वरूप भक्तों का आर्शीवाद देता
है कि व्यक्ति अपने योग्यता व क्षमता का सदुपयोग करता हुआ अपने आवश्यकताओं
की पूर्ति करे और अपने परिजनों व अन्य सगे सम्बन्धियों का भला करता चले।
ध्याम मंत्र .........
करालरूपा कालाब्जसमानाकृति विग्रहा।
कालरात्रि: शुभु दद्यात देवी चंडाट्टहासिनी॥
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