घट-घट वासी राम की व्यापकता को स्वीकारते हुए संत कवि तुलसीदास जी
कहते है सियाराम मय सब जग जानी। करहुं प्रणाम जोर जुग पानी।।
तुलसीदास जी के लिए सगुण और निर्गुण के भेद व्यर्थ हैं। कहते हैं -
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसे। जलु हिम उपल विलग नहिं जैसे।।
अर्थात् जिस प्रकार बर्फ और पानी एक ही है, उसी प्रकार सगुण और निर्गुण एक ही है। व्यक्ति चाहे सगुण राम का नाम ले चाहे निर्गुण राम का दोनों में ही त्याग, समर्पण, प्रेम, भक्ति आवश्यक है। राम के प्रति उनका समर्पण देखिए-
तुलसी जाके मुखन ते, धोखेहु निकसे राम।
ताके पग की पानहीं, मेरे तन की चाम।।
संत कवि तुलसीदास ने राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान जी महाराज एवं शिव कृपा से राम गुणगान करते हुए लोकहित के लिए अमर ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की। वह जीवन भर प्रभु राम का गुणगान करते रहे और राम की कृपा से लगभग 126 वर्ष की उम्र में महाप्रयाण किया। लोकहित के लिए लोक भाषा में रामायण रचने का आदेश तुलसीदास जी को भगवान शिव ने ही तो दिया था। वर्णन मिलता है कि महाप्रयाण के समय उन्होंने अपने भक्तों को यह संकेत दे दिया था कि अब वह इस देह को त्यागना चाहते हैं-
राम नाम यश बरनि कैं, भयो चहत अब मौन। तुलसी के मुख डारिबो, अब ही तुलसी सौन।।
अपने भक्तों के आग्रह पर उन्होंने अंतिम समय में सभी को राम नाम लेने की सलाह दी-
अलप तो अवधि जीव, तामें बहुसोच पोच। करिबे को बहुत है, काह काह कीजिए।।
पार न पुरानहू को, वेदहू को अंत नाहि। वानी तो अनेक, चित कहां-कहां दीजिये।।
काव्य की कला अनंत, छंद को प्रबंध बहु। राग तो रसीले, रस कहां-कहां पीजिए।।
लाखन में एक बात, तुलसी बताये जात। जनम जो सुधार चहौ, राम नाम लीजिये।।
जप, तप, पूजा, पाठ, दान, यज्ञ, ध्यान, साधना समाधि सभी को राम को अर्पित कर दीजिए, सफल होगा मानव जन्म। सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य उस परम प्रभु की कृपा पाना ही है। उस प्रभु को हम अल्लाह, ईसा, रहीम, अकाल पुरुष किसी भी नाम से पुकारें वह तो सभी में रमने वाला राम है। हम सब का नियंता है। हम सब उसी के अंश हैं और अंत में उसी में मिल जाना चाहते हैं। हमें उसे कभी नहीं भूलना चाहिए। संसार में कर्म करते हुए उसी को ध्यान में रखना चाहिए। यदि हम भौतिक सुख संपदा चाहते हैं, तो वह भी वही दे सकता है । यदि शरीर को किसी तरह का कष्ट हो, तो उसी को याद करें,, उसी से क्षमा मांगें कहें- प्रभु ! हमसे कोई अपराध हुआ है। किंतु इतना कठोर दंड न दें। वह तो दीन बंधु है, आपकी पुकार अवश्य सुनेगा। बस संकल्प लें, उसे कभी नहीं भूलेंगे, वह करुणा निधान आपकी सहायता के लिए दौड़ा आएगा। कारण ‘राम’ शब्द तो एक मन्त्र है
- मंत्र महामणि विषम ब्याल के। मैटत कठिन कुअंक भाल के।।
तुलसीदास जी के लिए सगुण और निर्गुण के भेद व्यर्थ हैं। कहते हैं -
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसे। जलु हिम उपल विलग नहिं जैसे।।
अर्थात् जिस प्रकार बर्फ और पानी एक ही है, उसी प्रकार सगुण और निर्गुण एक ही है। व्यक्ति चाहे सगुण राम का नाम ले चाहे निर्गुण राम का दोनों में ही त्याग, समर्पण, प्रेम, भक्ति आवश्यक है। राम के प्रति उनका समर्पण देखिए-
तुलसी जाके मुखन ते, धोखेहु निकसे राम।
ताके पग की पानहीं, मेरे तन की चाम।।
संत कवि तुलसीदास ने राम के अनन्य भक्त श्री हनुमान जी महाराज एवं शिव कृपा से राम गुणगान करते हुए लोकहित के लिए अमर ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की। वह जीवन भर प्रभु राम का गुणगान करते रहे और राम की कृपा से लगभग 126 वर्ष की उम्र में महाप्रयाण किया। लोकहित के लिए लोक भाषा में रामायण रचने का आदेश तुलसीदास जी को भगवान शिव ने ही तो दिया था। वर्णन मिलता है कि महाप्रयाण के समय उन्होंने अपने भक्तों को यह संकेत दे दिया था कि अब वह इस देह को त्यागना चाहते हैं-
राम नाम यश बरनि कैं, भयो चहत अब मौन। तुलसी के मुख डारिबो, अब ही तुलसी सौन।।
अपने भक्तों के आग्रह पर उन्होंने अंतिम समय में सभी को राम नाम लेने की सलाह दी-
अलप तो अवधि जीव, तामें बहुसोच पोच। करिबे को बहुत है, काह काह कीजिए।।
पार न पुरानहू को, वेदहू को अंत नाहि। वानी तो अनेक, चित कहां-कहां दीजिये।।
काव्य की कला अनंत, छंद को प्रबंध बहु। राग तो रसीले, रस कहां-कहां पीजिए।।
लाखन में एक बात, तुलसी बताये जात। जनम जो सुधार चहौ, राम नाम लीजिये।।
जप, तप, पूजा, पाठ, दान, यज्ञ, ध्यान, साधना समाधि सभी को राम को अर्पित कर दीजिए, सफल होगा मानव जन्म। सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य उस परम प्रभु की कृपा पाना ही है। उस प्रभु को हम अल्लाह, ईसा, रहीम, अकाल पुरुष किसी भी नाम से पुकारें वह तो सभी में रमने वाला राम है। हम सब का नियंता है। हम सब उसी के अंश हैं और अंत में उसी में मिल जाना चाहते हैं। हमें उसे कभी नहीं भूलना चाहिए। संसार में कर्म करते हुए उसी को ध्यान में रखना चाहिए। यदि हम भौतिक सुख संपदा चाहते हैं, तो वह भी वही दे सकता है । यदि शरीर को किसी तरह का कष्ट हो, तो उसी को याद करें,, उसी से क्षमा मांगें कहें- प्रभु ! हमसे कोई अपराध हुआ है। किंतु इतना कठोर दंड न दें। वह तो दीन बंधु है, आपकी पुकार अवश्य सुनेगा। बस संकल्प लें, उसे कभी नहीं भूलेंगे, वह करुणा निधान आपकी सहायता के लिए दौड़ा आएगा। कारण ‘राम’ शब्द तो एक मन्त्र है
- मंत्र महामणि विषम ब्याल के। मैटत कठिन कुअंक भाल के।।