भगवान शिव सदैव लोको का उपकार और हित करने वाले हैं। त्रिदेवों में इन्हें
संहार का देवता भी माना गया है। अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में
शिव उपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति को सुगंधित
पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती । शिव तो स्वच्छ जल,
बिल्व पत्र, भाँग, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल यथा-धूतरा आदि से
ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी
नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और
रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में
त्रिशूल पकड़े हुए, वे सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी
ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है।
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