कहां होता है शिवलिंग में शिव मुख ?
शिवलिंग पूजा मन से कलह को मिटाकर जीवन में हर सुख और खुशियाँ देने वाली
मानी गई है। हर देव पूजा के समान शिवलिंग पूजा में भी श्रद्धा और आस्था
महत्व रखती है। किंतु इसके साथ शास्त्रोंक्त नियम-विधान अनुसार शिवलिंग
पूजा शुभ फल देने वाली मानी गई है। इन नियमों में एक है शिवलिंग पूजा के
समय भक्त का बैठने की दिशा। जानते हैं शिवलिंग पूजा के समय किस दिशा और
स्थान पर बैठना कामनाओं को पूरा करने की दृष्टि से विशेष फलदायी है।
- जहां शिवलिंग स्थापित हो, उससे पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके नहीं बैठना
चाहिये। क्योंकि यह दिशा भगवान शिव के आगे या सामने होती है और धार्मिक
दृष्टि से देव मूर्ति या प्रतिमा का सामना या रोक ठीक नहीं होती।
- शिवलिंग से उत्तर दिशा में भी न बैठे। क्योंकि इस दिशा में भगवान शंकर का
बायां अंग माना जाता है, जो शक्तिरुपा देवी उमा का स्थान है।
- पूजा के दौरान शिवलिंग से पश्चिम दिशा की ओर नहीं बैठना चाहिए। क्योंकि
वह भगवान शंकर की पीठ मानी जाती है। इसलिए पीछे से देवपूजा करना शुभ फल
नहीं देती।
- इस प्रकार एक दिशा बचती है - वह है दक्षिण दिशा। इस दिशा में बैठकर पूजा
फल और इच्छापूर्ति की दृष्टि से श्रेष्ठ मानी जाती है। सरल अर्थ में
शिवलिंग के दक्षिण दिशा की ओर बैठकर यानि उत्तर दिशा की ओर मुंह कर पूजा और
अभिषेक शीघ्र फल देने वाला माना गया है। इसलिए उज्जैन के दक्षिणामुखी
महाकाल और अन्य दक्षिणमुखी शिवलिंग पूजा का बहुत धार्मिक महत्व है।
शिवलिंग पूजा में सही दिशा में बैठक के साथ ही भक्त को भस्म का त्रिपुण्ड़्
लगाना, रुद्राक्ष की माला पहनना और बिल्वपत्र अवश्य चढ़ाना चाहिए। अगर
भस्म उपलब्ध न हो तो मिट्टी से भी मस्तक पर त्रिपुण्ड्र लगाने का विधान
शास्त्रों में बताया गया है।
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