मत्स्य अवतार की कथा :
कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम सत्यव्रत था।सत्यव्रत पुण्यात्मा तो था ही, बड़े उदार ह्रदय का भी था। प्रभात का समय था।सूर्योदय हो चुका था। सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहा था। उसने स्नानकरने के पश्चात जब तर्पण के लिए अंजलि में जल लिया, तो अंजलि में जल के साथ एकछोटी-सी मछली भी आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ दिया। मछलीबोली'राजन! जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोईबड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए।'सत्यव्रत के ह्रदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुए अपने कमंडलु में डाल लिया। आश्चर्य! एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडलु उसके रहने के लिए छोटा पड़ने लगा। दूसरे दिन मछली सत्यव्रत से बोली।'राजन! मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूंढ़िए, क्योंकि मेरा शरीर बढ़ गया है। मुझे घूमने-फिरने में बड़ा कष्ट होता है।' सत्यव्रत ने मछली को कमंडलु से निकालकर पानी से भरे हुए मटके में रख दिया। आश्चर्य! मछली का शरीर रात भर मेंही मटके में इतना बढ़ गया कि मटका भी उसके रहने कि लिए छोटा पड़ गया। दूसरेदिन मछली पुनः सत्यव्रत से बोली, 'राजन, मेरे रहने के लिए कहीं और प्रबंधकीजिए, क्योंकि मटका भी मेरे रहने के लिए छोटा पड़ रहा है।' तब सत्यव्रत नेमछली को निकालकर एक सरोवर में डालदिया , किंतु सरोवर भी मछली के लिए छोटा पड़गया। इसके बाद सत्यव्रत ने मछली को नदी में और फिर उसके बाद समुद्र में डालदिया। आश्चर्य! समुद्र में भी मछली का शरीर इतना अधिक बढ़ गया कि मछली के रहनेके लिए वह छोटा पड़ गया। अतः मछली पुनः सत्यव्रत से बोली, 'राजन! यह समुद्र भीमेरे रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। मेरे रहने की व्यवस्था कहीं और कीजिए।'सत्यव्रत विस्मित हो उठा। उसने आज तक ऐसी मछली कभी नहीं देखी थी। वहविस्मय-भरे स्वर में बोला, 'मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबो देने वालेआप कौन हैं? आप का शरीर जिस गति से प्रतिदिन बढ़ता है, उसे दृष्टि में रखतेहुए बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि आप अवश्य परमात्मा हैं। यदि यह बातसत्य है, तो कृपा करके बताइए के आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है?'सचमुच, वह भगवान श्रीहरि ही थे। मत्स्य रूपधारी श्रीहरि ने उत्तर दिया, 'राजन!हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जगत में चारों ओर अज्ञान औरअधर्म का अंधकार फैला हुआ है। मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूपधारण किया है। आज से सातवें दिन पृथ्वी प्रलय के चक्र में फिर जाएगी। समुद्रउमड़ उठेगा। भयानक वृष्टि होगी। सारी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। जल केअतिरिक्त कहीं कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होगा। आपके पास एक नाव पहुंचेगी, आप सभीअनाजों और औषधियों के बीजों को लेकर सप्तॠषियों के साथ नाव पर बैठ जाइएगा। मैंउसी समय आपको पुनः दिखाई पड़ूंगा और आपको आत्मतत्व का ज्ञान प्रदान करूंगा।'सत्यव्रत उसी दिन से हरि का स्मरण करते हुए प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे।सातवें दिन प्रलय का दृश्य उपस्थित हो उठा। उमड़कर अपनी सीमा से बाहर बहनेलगा। भयानक वृष्टि होने लगी। थोड़ी ही देर में जल ही जल हो गया। संपूर्णपृथ्वी जल में समा गई। उसी समय एक नाव दिखाई पड़ी। सत्यव्रत सप्तॠषियों के साथउस नाव पर बैठ गए, उन्होंने नाव के ऊपर संपूर्ण अनाजों और औषधियों के बीज भी भर लिए।नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्तकहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। सहसा मत्स्यरूपी भगवान प्रलय के सागरमें दिखाई पड़े। सत्यव्रत और सप्तर्षिगण मतस्य रूपी भगवान की प्रार्थना करनेलगे,'हे प्रभो! आप ही सृष्टि के आदि हैं, आप ही पालक है और आप ही रक्षक हीहैं। दया करके हमें अपनी शरण में लीजिए, हमारी रक्षा कीजिए।' सत्यव्रत औरसप्तॠषियों की प्रार्थना पर मत्स्यरूपी भगवान प्रसन्न हो उठे। उन्होंने अपनेवचन के अनुसार सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया, बताया,'सभी प्राणियों मेंमैं ही निवास करता हूं। न कोई ऊंच है, न नीच। सभी प्राणी एक समान हैं। जगतनश्वर है। नश्वर जगत में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नहीं है। जो प्राणी मुझेसबमें देखता हुआ जीवन व्यतीत करता है, वह अंत में मुझमें ही मिल जाता है।'मत्स्य रूपी भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते
No comments:
Post a Comment