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Wednesday, 26 September 2012



कल 28 सितम्बर को अनंत चतुर्दशी है |भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। इस दिन अनंत के रूप में हरि की पूजा होती है। पुरुष दाएं तथा स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत धारण करती हैं। अनंत राखी के समान रूई या रेशम के कुमकुम रंग में रंगे धागे होते हैं और उनमें चौदह गांठे होती हैं। इन्हीं धागों से अनंत का निर्माण होता है। यह व्यक्तिगत पूजा है, इसका कोई सामाजिक धार्मिक उत्सव नहीं होता।अग्नि पुराण में इसका विवरण है। व्रत करने वाले को धान के आटे से रोटियां या पूड़ी बनानी होती हैं, जिनकी आधी वह ब्राह्मण को दे देता है और शेष स्वयं प्रयोग में लाता है।इस दिन व्रती को चाहिए कि प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर कलश की स्थापना करें। कलश पर कुश से निर्मित अनंत की स्थापना की जाती है। इसके आगे कुंकूम, केसर या हल्दी से रंग कर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला 'अनंत' भी रखा जाता हैयूं तो यह व्रत नदी-तट पर किया जाना चाहिए और हरि की लोककथाएं सुननी चाहिए। लेकिन संभव ना होने पर घर में ही स्थापित मंदिर के सामने हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है- 'हे वासुदेव, इस अनंत संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो तथा उन्हें अनंत के रूप का ध्यान करने में संलग्न करो, अनंत रूप वाले प्रभु तुम्हें नमस्कार है।'हरि की पूजा करके तथा अपने हाथ के ऊपरी भाग में या गले में धागा बांध कर या लटका कर (जिस पर मंत्र पढ़ा गया हो) व्रती अनंत व्रत को पूर्ण करता है। यदि हरि अनंत हैं तो 14 गांठें हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों की प्रतीक हैं।अनंत चतुर्दशी पर कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से कही गई कौण्डिन्य एवं उसकी स्त्री सुशीला की क् था भी सुनाई जाती है।
 प्राचीन काल में सुमन्तु नाम के ब्राह्मण की परम सुन्दरी धर्म परायण तथा ज्योतिर्मयी सुशीला कन्या थी l ब्राह्मण ने उसका विवाह कौण्डिन्य ऋषी से कर दिया l कौण्डिन्य ऋषी सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चले तो रास्ते में ही रात हो गयी l वे एक नदी के तट पर रुक गए | सुबह उठाने पर उन्होंने देखा कि कुछ औरतें सुन्दर-सुन्दर वस्त्र धारण कर के किसी देवता की पूजा कर रही है l सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधि पूर्वक अनन्त व्रत की बात व महत्ता बता दी l सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान कर के चौदह गाँठो वाला डोरा हाथ मे बाँधा और अपने पति के पास आ गयी lकौण्डिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात स्पष्ट कर दी l कौण्डिन्य सुशीला की बातों से प्रसन्न नहीं हुए l उन्होंने डोरे को तोड़कर आग में जला दिया l यह अनन्त जी का अपमान था l परिणामत: कौण्डिन्य मुनि दुखी रहने लगे l उनकी सारी सम्पत्ती नष्ट हो गयी l इस दरिद्रता का कारण पूछने पर सुशीला ने डोरे जलाने की बात दोहराई l पश्चाताप करते हुए ऋषी अनन्त की प्राप्ति के लिए वन में निकल गये l जब वे भटकते -भटकते निराश होकर गिर पड़े तब अनन्त जी प्रकट होकर बोले -'हे कौण्डिन्य ! मेरे तिरस्कार के कारण ही तुम दुखी हुए l तुमने पश्चाताप किया है l मै प्रसन्न हूँ l घर जाकर विधि पूर्वक अनन्त व्रत करो l चौदह वर्ष पर्यान्त व्रत कर ने से तुम्हारा दुःख दूर हो जाएगा l तुम्हे अनन्त सम्पत्ती मिलेगी |कौण्डिन्य ने वैसा ही किया l उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गयी l श्री कृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठर ने भी अनन्त -भगवान् का व्रत किया जिसके प्रभाव से पाण्डव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिर काल तक निष्कंठक राज्य करते रहे कृष्ण का कथन है कि 'अनंत' उनके रूपों का एक रूप है और वे काल हैं जिसे अनंत कहा जाता है। अनंत व्रत चंदन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचारों के साथ किया जाता है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है कि यह व्रत 14 वर्षों तक किया जाए, तो व्रती विष्णु लोक की प्राप्ति कर सकता है।

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