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Monday, 3 September 2012

  एक बार नारद जी बैकुण्ठ गए| द्वार के बाहर उन्होंने एक रजिस्टर देखा. उसमें भक्तों की लिस्ट थी तो उसे खोल कर देखा तो उन्होंने देखा कि उनका नाम सबसे पहले था, तो वो बहुत खुश हुए. जब वापस जाने लगे तो रास्ते में हनुमान जी मिले. नारदजी ने कहा कि मै भगवान के पास से आ रहा हॅ. वहाँ भगवान के भक्तों की लिस्ट मे मेरा नाम सबसे उपर था और आपका नाम तो था ही नही.हनुमान जी कहते है- कि मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि मेरा नाम लिस्ट में ऊपर है कि नीचे है,या है भी कि नहीं. मै तो परमात्मा को याद कर रहा हूँ और उनकी कृपा मुझ पर बरस रही है । मेरे लिए यहीं काफी है .कुछ समय बाद नारद जी पुन: बैकुण्ठ गए, तो अंदर एक रजिस्टर और रखा था.नारदजी ने उसे खोला तो उसमें उनका नाम ही नही था. उसमें हनुमान जी का नाम सबसे उपर था , उन्होंने भगवान जी से पूछा कि ये क्या है । बाहर मेरा नाम सबसे ऊपर था अन्दर वाले में हनुमान जी का नाम सबसे पर है.भगवान जी ने कहा- कि नारद, जो बाहर वाला रजिस्टर है वो उन भक्तों का है जो मुझे याद करते है । और अंदर वाला रजिस्टर उन भक्तों का है जिन्हें मै याद करता हूँ ।कहने का तात्पर्य है कि हम तो भगवान को याद करते है पर हमे उस स्तर का बनना है कि उसकी दया हमें पर विशेष रूप से बरसे, और भगवान जी हमें याद करे. वो ही सच्चा भक्त है ।

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