आज (26.09.2012) वामन द्वादशी है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। भगवान वामन की कथा इस प्रकार है -सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊँगा। कुछ समय पश्चात भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। राजा बली बड़े पराक्रमी और दानी थे। भगवान के वे बड़े भक्त भी थे, लेकिन उन्हें बहुत ही घमंडी था। एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था, तब भगवान के मन में राजा बली की परीक्षा लेने की सूझी और वामन अवतार लेकर उसके यज्ञ में पहुँच गए l जैसे ही वे राजा बली के यज्ञ स्थल पर गए, वे उनसे बहुत प्रभावित हुए और भगवान के आकर्षक रूप को देखते हुए उन्हें उचितस्थान दिया। अंत में जब दान की बारी आई, तो राजा बली ने भगवान के वामन अवतार से दान माँगने के लिए कहा और तब वामन भवन ने राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। तब राजा बली मुस्कुराए और बोले तीन पग जमीन तो बहुत छोटा-सा दान है। महाराज और कोई बड़ा दान माँग लीजिए, पर भगवान के वामन अवतार ने उनसे तीन पग जमीन ही माँगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। तब भगवान ने बली से पूछा कि अपना तीसरा पग कहाँ रखूँ ?जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने महादानी होने का परिचय देते हुए भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।
इस कथा के अनुसार हमें इस बात का ज्ञान रखना बहुत जरूरी है कि कभी-कभी लोगों का घमंड चूर करने के लिए भगवान को भी अवतार लेना पड़ता है। अत: हमें कभी भी धनवान होने का घमंड नहीं करना चाहिए।
पूजन मंत्र
देवेश्वराय देवश्य, देव संभूति कारिणे। प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नमः।।
अर्ध्य मंत्र
नमस्ते पदमनाभाय नमस्ते जलः शायिने तुभ्यमर्च्य प्रयच्छामि वाल यामन अप्रिणे।। नमः शांग धनुर्याण पाठ्ये वामनाय च। यज्ञभुव फलदा त्रेच वामनाय नमो नमः।।
व्रत विधि
वामन द्वादशी का व्रत करने वाले व्रती को
चाहिए कि द्वादशी को दोपहर के समय स्वर्ण या यज्ञोपवित से बनाकर वामन भगवान
की प्रतिमा स्थापित कर सुवर्ण पात्र अथवा मिट्टी के पात्र में
षोडशोपचारपूर्वक पूजन करें तथा वामन भगवान की कथा सुनें, अर्ध्य दान करें,
फल, फूल चढ़ावे तथा उपवास करें। तदुपरांत मिट्टी के पात्र में दही, चावल
एवं शक्कर रखकर ब्राह्मण को माला, गउमुखी, कमण्डल, लाठी, आसन, गीता, फल,
छाता, खडाऊ तथा दक्षिणा सहित सम्मान सहित विदा करे। इस दिन फलाहार कर दूसरे
दिन त्रयोदशी को व्रत पारण करें। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को
विधि-विधान पूर्वक व्रत करने से सुख, आनंद, मनोवांछित फल तथा स्वर्ग की
प्राप्ति होती है।
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