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Sunday, 30 September 2012

'' पितृ पक्ष ''


  आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों को तृप्त करने का समय है इसलिए इसे पितृपक्ष कहते हैं। पंद्रह दिन के इस पक्ष में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती इस समस्या के समधान के लिए पितृपक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी नियत की गई हैं जिस दिन श्राद्ध करने से हमारे समस्त पितृजनों की आत्मा को शांति मिलती है। यह प्रमुख तिथियां इस प्रकार हैं-

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा श्राद्ध- यह तिथि नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि भी ज्ञात न हो तो इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इससे घर में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पंचमी श्राद्ध - इस तिथि पर उन परिजनों काश्राद्ध करने का महत्व है जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो। इसे कुंवारा पंचमी भी कहते हैं।

नवमी श्राद्ध- यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी कहते हैं। इस तिथि पर  कुल की सभी दिवंगत महिलाओं, जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो , का श्राद्ध किया जा सकता है ।

एकादशी व द्वादशी श्राद्ध - इस तिथि को परिवार के उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है जिन्होंने संन्यास लिया हो।

चतुर्दशी श्राद्ध- यह तिथि उन परिजनों के श्राद्ध के लिए उपयुक्त है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे- दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, शस्त्र के द्वारा आदि।

सर्वपितृमोक्ष अमावस्या- किसी कारण से पितृपक्ष की सभी तिथियों पर पितरों का श्राद्ध चूक जाएं या पितरों की तिथि याद न हो तब इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है

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