Sponcered Links

Saturday, 17 November 2012

अरण्यकाण्ड का प्रसंग है,
 एक बार भगवान श्रीराम सुन्दर फूलो को चुनकर अपने हाथो सेभांति-भांति के गहने बनाकर सीताजी को पहना रहे थे,सीता जी को आश्चर्य हुआ, प्रभु येआप क्या कर रहे है? ये तो मेरा काम है, मानो भगवान बताना चाहते है,पत्नी तो सदा हीसेवा करती है. कुछ उसके  प्रति हमारा भी कर्तव्य है. और यहाँ से जानकी जी को अपनीलीला का आरंभ करना है,तो मानो भगवान उनको हार पहनाकर उनका स्वागत कर रहे है कि देवीअपनी लीला का श्रीगणेश करो.यही श्रेष्ठ दाम्पत्य जीवन है.
तभी इंद्र का पुत्र जयंत कौआ का वेष बनाकर सीता जी के चरणों में चोच मारकर भागा, जबरक्त बह चला तब रघुनाथ जी ने जाना और सरकंडे का बाण संधान किया और मंत्र से प्रेरितबाण उस कौए के पीछे दौड़ा.कभी किसी के दाम्पत्य जीवन में चोच मत मारो, जो ऐसा करते है, वे कौए ही है, क्योकिहंस ऐसा कभी नहीं करते. जिस सम्बन्ध को विधाता ने जोड़ा है हमें कोई अधिकार नहीं हमउनके जीवन में विक्षेप डाले. जयंत अपने पिता इंद्र के पास गया, पर श्रीराम काविरोधी जान, उन्होंने उसे नहीं रखा, ब्रह्मलोक, शिवलोक समस्त  लोको में गया.रखना तोदूर उसे किसी ने बैठने को भी नहीं कहा.क्यों ?क्योकि अपराध किसी का करे और क्षमाकिसी और से माँगे.
नारद जी मिले संत है उनका ह्रदय कोमल होता है बोले - जिनका अपराध किया उसी के पासजाओ. हम भी अपराध करते है परिवार का, समाज का, और जब उसका दंड भोगना पडता है, तोशनि राहू केतु को दोष देते है और क्षमा मांगनी पड़ती है तो हनुमान जी के मंदिर मेंघी का दीपक जलाते है.वे भी यही कहते है जिसका अपराध किया उसके पास जाओ.
जयंत बोला - मेरी रक्षा तो पहले कीजिये.
नारद जी बोले - जयंत यदि ये बाण तुम्हे लगना होता तो कब का लग गया होता, एक पल मेंही तुम्हारा काम तमाम कर देता, प्रभु बड़े कृपालु है.
जयंत - मै उनसे क्या कहूँगा ?
नारद जी बोले - कहना पहले प्रभाव देखने आया था, अब स्वभाव देखने आया हूँ.कौआ कामांध था,
भगवान ने उसे द्रष्टि प्रदान की एक आँख से काना करके छोड़ दिया .।
                                                              बोलिए सीता पति रामचन्द्र भगवान की    जय    ,,,,

No comments:

Post a Comment