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Friday, 16 November 2012

'' हनुमान जी का बुद्धि चातुर्य ''

                                                       
हनुमानजी में अद्भुत बुद्धि-चातुर्य था, जो कि लंका विजय में बहुत ही निर्णायक साबित हुआ। वैसे तो उनके बुद्धि-चातुर्य से जुड़े अनेक प्रसंग हैं, किंतु एक प्रसंग यहां पर विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसने रावण के विनाश और श्रीराम की विजयश्री को सुनिश्चित कर दिया।श्रीराम और रावण के बीच भयानक युद्ध चल रहा था। रावण के अनेक योद्धा रणभूमि में मारे जा चुके थे। हताशा और निराशा से वह घिरता जा रहा था। उसका मनोबल गिर चुका था, तथापि अभिमानी प्रवृत्ति के कारण वह हार मानने को तैयार नहीं था। अंतत: उसने अपनी विजय के लिए सम्पुटित मंत्र द्वारा चंडी महायज्ञ करने का निर्णय लिया। ऐसी मान्यता है कि यह महायज्ञ सफल होने पर विजय सुनिश्चित हो जाती है। देवी स्वयं विजय का वरदान देती हैं।रावण ने श्रेष्ठ ब्राह्मणों को बुलाकर चंडी महायज्ञ प्रारंभ करवाया। गुप्तचरों से इसकी सूचना ज्यों ही मारुतिनंदन को मिली, वह विप्र रूप धारण कर यज्ञ स्थल पर पहुंच गये और यज्ञ में आए ब्राह्मणों की निष्काम भाव से सेवा करनी प्रारंभ कर दी। सेवा से विप्र तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं, ऐसा उनका स्वभाव होता है। हनुमान जी की सेवा रंग लाई। महायज्ञ में आए ब्राह्मण इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने हनुमान जी से वरदान मांगने को कहा। चतुर शिरोमणि हनुमान जी ने पहले तो कुछ भी मांगने से मना कर दिया, किंतु उनकी सेवा से प्रसन्न ब्राह्मणों ने जब जोर दिया तो उन्होंने उनसे एक वर मांग ही लिया। उनका यही वर श्रीराम की विजय में निर्णायक सिद्ध हुआ।जानते हैं कपिवर ने क्या वर मांगा? उन्होंने ब्राह्मणों से वर-याचना में कहा कि जिस मंत्र के सम्पुटीकरण से हवन किया जा रहा है, उसी मंत्र के एक अक्षर में परिवर्तन कर दिया जाए। हनुमान की सेवा से गद्गद ब्राह्मणों ने उनकी वर-याचना स्वीकार कर ली। अक्षर परिवर्तन से मंत्र में अर्थांतर हो गया और बजाय विजय के रावण का विनाश हो गया।
‘अर्गलास्तोत्र’ का वह मूल मंत्र इस प्रकार है-
                  जय त्वं चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
                जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते॥
हनुमान जी ने वर याचना में ‘भूतार्तिहारिणि’ में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारण करने का निवेदन किया, जिस पर ब्राह्मणों ने ‘तथास्तु’ कहा। इससे सब कुछ उलट गया। ‘भूतार्तिहारिणि’ का अर्थ होता है- ‘संपूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली।’ जबकि अक्षर परिवर्तन से हो गया ‘भूतार्तिकारिणि।’ इसका शाब्दिक अर्थ होता है- ‘प्राणियों को पीडि़त करने वाली।’अर्थान्तर तथा अक्षर विपर्यय ने अपना प्रभाव दिखाया। विजय के बजाय दशानन का कुल समेत नाश हो गया। यह हनुमान जी के चातुर्य से ही संभव हुआ। इससे मंत्रों के सूक्ष्म ज्ञान पर बजरंगबली की मजबूत पकड़ का भी पता चलता है। वह श्रेष्ठ तांत्रिक भी थे। उनके बुद्धि चातुर्य से खुश होकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने एक बार सीता जी से यह कहा था कि यदि उन्हें मारुतिनंदन का सहयोग लंका विजय में न मिला होता, तो वह सीता वियोगी ही बने रहते।
                                                                                      जय श्रीराम  ।



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