दीपावली के ठीक 15 दिन पहले शरद पूर्णिमा आती है। इस समय तक दशहरा समाप्त
हो जाता है। मस्ती करने वालों का पूरा ध्यान दीवाली की मिठाइयों और पटाखों
पर चला जाता है। मूलत: यह त्योहार फसलों से संबंधित है। कहा जाता है
कि इस रात धन और उन्नति की देवी लक्ष्मी सारे घरों का दौरा करती है और साथ
ही सारे बच्चों, बूढ़ों और जवान को अच्छी किस्मत के लिए गुडलक कहती है।इस विशेष रात को कोजागिरी भी कहा जाता है। इस रात को बर्फ और केसरियायुक्त
दूध पिया जाता है। इस पूरे चंद्रमा वाली रात को नवन्ना पूर्णिमा कहा जाता
है। ऐसा आभास होता है कि नए भोजन के स्वागत के लिए चांदनी रात अपना दामन
पसारे हुए है। इस अवसर पर भगवान को नया उपजाया हुआ चावल भेंट करते हैं और पूर्ण रूप से खिले चांद के सामने लैम्प जलाते हैं। शरद पूर्णिमा किसानों की जिंदगियों में दो तरह का महत्वपूर्ण संदेश लाती
है। पहला जो कड़ी मेहनत करेगा भगवान उसे अवश्य फल प्रदान करेगा और दूसरा यह
कि प्रभु मनुष्य के द्वारा की जा रही सारी गतिविधियों पर नजर रखता है। बहुत सारे दुर्गा मंदिरों में शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गीत संगीत से
मां दुर्गा को जगाया जाता है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा नौ
दिनों तक महिषासुर से लड़कर थकने के बाद सो गई थीं।
शरद पूर्णिमा वर्त कथा
आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा की कथा कुछ इस प्रकार से है- एक साहूकार के दो पुत्रियां थी. दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी. परिणामस्वरूप साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है. फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं.साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया. फलस्वरू
प उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया. तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से पकड़ा ढ़क दिया. फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया.
शरद पूर्णिमा व्रत विधि
इस दिन प्रात:काल में व्रत कर अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इस पूर्णिमा को रात में ऎरावत हाथी पर चढे हुए इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा कर दीपावली की तरह रोशनी कि जाती है. इस दिन कम से कम 100 दीपक और अधिक से अधिक एक लाख तक हों. इस तरह दीपक जलाकर अगले दिन इन्द्र देव का पूजन किया जाता है. ब्राह्माणों को शक्कर में घी मिला हुआ, ओर खीर का भोजन करायें. धोती, गमच्छा, आदि वस्त्र और दीपक (अगर सम्भव हों, तो सोने का) तथा दक्षिणा दान करें. लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. यह माना जाता है, कि इस रात को इन्द्र और लक्ष्मी जी यह देखते है, कि कौन जाग रहा है, इसलिये इस दिन जागरण करने वाले की धन -संपति में वृ्द्धि होती है. इस व्रत को मुख्य रुप से स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. उपवास करने वाली स्त्रियां इस दिन लकडी की चौकी पर सातिया बनाकर पानी का लोटा भरकर रखती है. एक गिलास में गेहूं भरकर उसके ऊपर रुपया रखा जाता है. और गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कहानी सुनी जाती है.
शरद पूर्णिमा वर्त कथा
आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा की कथा कुछ इस प्रकार से है- एक साहूकार के दो पुत्रियां थी. दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी. परिणामस्वरूप साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है. फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं.साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया. फलस्वरू
प उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया. तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से पकड़ा ढ़क दिया. फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया.
शरद पूर्णिमा व्रत विधि
इस दिन प्रात:काल में व्रत कर अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इस पूर्णिमा को रात में ऎरावत हाथी पर चढे हुए इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा कर दीपावली की तरह रोशनी कि जाती है. इस दिन कम से कम 100 दीपक और अधिक से अधिक एक लाख तक हों. इस तरह दीपक जलाकर अगले दिन इन्द्र देव का पूजन किया जाता है. ब्राह्माणों को शक्कर में घी मिला हुआ, ओर खीर का भोजन करायें. धोती, गमच्छा, आदि वस्त्र और दीपक (अगर सम्भव हों, तो सोने का) तथा दक्षिणा दान करें. लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. यह माना जाता है, कि इस रात को इन्द्र और लक्ष्मी जी यह देखते है, कि कौन जाग रहा है, इसलिये इस दिन जागरण करने वाले की धन -संपति में वृ्द्धि होती है. इस व्रत को मुख्य रुप से स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. उपवास करने वाली स्त्रियां इस दिन लकडी की चौकी पर सातिया बनाकर पानी का लोटा भरकर रखती है. एक गिलास में गेहूं भरकर उसके ऊपर रुपया रखा जाता है. और गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कहानी सुनी जाती है.
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