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Sunday, 18 November 2012

'' बिल्वपत्र ''

एक कथा के अनुसार श्रीविष्णु पत्नी लक्ष्मी ने शंकर के प्रिय श्रावण माह में शिवलिंग पर प्रतिदिन 1001 सफेद कमल अर्पण करने का निश्चय किया। स्वर्ण तश्तरी में उन्होंने गिनती के कमल रखे, लेकिन मंदिर पहुँचने पर तीन कमल अपने आप कम हो जाते थे। सो मंदिर पहुँचकर उन्होंने उन कमलों पर जल छींटा, तब उसमें से एक पौधे का निर्माण हु‌आ। इस पर त्रिदल ऐसे हजारों पत्ते थे, जिन्हें तोड़कर लक्ष्मी शिवलिंग पर चढ़ाने लगीं, सो त्रिदल के कम होने का तो सवाल ही खत्म हो गया।और लक्ष्मी ने भक्ति के सामर्थ्य पर निर्माण कि‌ए बिल्वपत्र शिव को प्रिय हो ग‌ए। लक्ष्मी यानी धन-वैभव, जो कभी बासी नहीं होता। यही वजह है कि लक्ष्मी द्वारा पैदा किया गया बिल्वपत्र भी वैसा ही है। ताजा बिल्वपत्र न मिलने की दशा में शिव को अर्पित बिल्वपत्र पुनः चढ़ाया जा सकता है। बिल्वपत्र का वृक्ष प्रकृति का मनुष्य को दिया वरदान है।,,,,,,,,,,,,,,,,,,, 
                                                                                   जय भोले नाथ..............

Saturday, 17 November 2012

अरण्यकाण्ड का प्रसंग है,
 एक बार भगवान श्रीराम सुन्दर फूलो को चुनकर अपने हाथो सेभांति-भांति के गहने बनाकर सीताजी को पहना रहे थे,सीता जी को आश्चर्य हुआ, प्रभु येआप क्या कर रहे है? ये तो मेरा काम है, मानो भगवान बताना चाहते है,पत्नी तो सदा हीसेवा करती है. कुछ उसके  प्रति हमारा भी कर्तव्य है. और यहाँ से जानकी जी को अपनीलीला का आरंभ करना है,तो मानो भगवान उनको हार पहनाकर उनका स्वागत कर रहे है कि देवीअपनी लीला का श्रीगणेश करो.यही श्रेष्ठ दाम्पत्य जीवन है.
तभी इंद्र का पुत्र जयंत कौआ का वेष बनाकर सीता जी के चरणों में चोच मारकर भागा, जबरक्त बह चला तब रघुनाथ जी ने जाना और सरकंडे का बाण संधान किया और मंत्र से प्रेरितबाण उस कौए के पीछे दौड़ा.कभी किसी के दाम्पत्य जीवन में चोच मत मारो, जो ऐसा करते है, वे कौए ही है, क्योकिहंस ऐसा कभी नहीं करते. जिस सम्बन्ध को विधाता ने जोड़ा है हमें कोई अधिकार नहीं हमउनके जीवन में विक्षेप डाले. जयंत अपने पिता इंद्र के पास गया, पर श्रीराम काविरोधी जान, उन्होंने उसे नहीं रखा, ब्रह्मलोक, शिवलोक समस्त  लोको में गया.रखना तोदूर उसे किसी ने बैठने को भी नहीं कहा.क्यों ?क्योकि अपराध किसी का करे और क्षमाकिसी और से माँगे.
नारद जी मिले संत है उनका ह्रदय कोमल होता है बोले - जिनका अपराध किया उसी के पासजाओ. हम भी अपराध करते है परिवार का, समाज का, और जब उसका दंड भोगना पडता है, तोशनि राहू केतु को दोष देते है और क्षमा मांगनी पड़ती है तो हनुमान जी के मंदिर मेंघी का दीपक जलाते है.वे भी यही कहते है जिसका अपराध किया उसके पास जाओ.
जयंत बोला - मेरी रक्षा तो पहले कीजिये.
नारद जी बोले - जयंत यदि ये बाण तुम्हे लगना होता तो कब का लग गया होता, एक पल मेंही तुम्हारा काम तमाम कर देता, प्रभु बड़े कृपालु है.
जयंत - मै उनसे क्या कहूँगा ?
नारद जी बोले - कहना पहले प्रभाव देखने आया था, अब स्वभाव देखने आया हूँ.कौआ कामांध था,
भगवान ने उसे द्रष्टि प्रदान की एक आँख से काना करके छोड़ दिया .।
                                                              बोलिए सीता पति रामचन्द्र भगवान की    जय    ,,,,

Friday, 16 November 2012

'' हनुमान जी का बुद्धि चातुर्य ''

                                                       
हनुमानजी में अद्भुत बुद्धि-चातुर्य था, जो कि लंका विजय में बहुत ही निर्णायक साबित हुआ। वैसे तो उनके बुद्धि-चातुर्य से जुड़े अनेक प्रसंग हैं, किंतु एक प्रसंग यहां पर विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसने रावण के विनाश और श्रीराम की विजयश्री को सुनिश्चित कर दिया।श्रीराम और रावण के बीच भयानक युद्ध चल रहा था। रावण के अनेक योद्धा रणभूमि में मारे जा चुके थे। हताशा और निराशा से वह घिरता जा रहा था। उसका मनोबल गिर चुका था, तथापि अभिमानी प्रवृत्ति के कारण वह हार मानने को तैयार नहीं था। अंतत: उसने अपनी विजय के लिए सम्पुटित मंत्र द्वारा चंडी महायज्ञ करने का निर्णय लिया। ऐसी मान्यता है कि यह महायज्ञ सफल होने पर विजय सुनिश्चित हो जाती है। देवी स्वयं विजय का वरदान देती हैं।रावण ने श्रेष्ठ ब्राह्मणों को बुलाकर चंडी महायज्ञ प्रारंभ करवाया। गुप्तचरों से इसकी सूचना ज्यों ही मारुतिनंदन को मिली, वह विप्र रूप धारण कर यज्ञ स्थल पर पहुंच गये और यज्ञ में आए ब्राह्मणों की निष्काम भाव से सेवा करनी प्रारंभ कर दी। सेवा से विप्र तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं, ऐसा उनका स्वभाव होता है। हनुमान जी की सेवा रंग लाई। महायज्ञ में आए ब्राह्मण इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने हनुमान जी से वरदान मांगने को कहा। चतुर शिरोमणि हनुमान जी ने पहले तो कुछ भी मांगने से मना कर दिया, किंतु उनकी सेवा से प्रसन्न ब्राह्मणों ने जब जोर दिया तो उन्होंने उनसे एक वर मांग ही लिया। उनका यही वर श्रीराम की विजय में निर्णायक सिद्ध हुआ।जानते हैं कपिवर ने क्या वर मांगा? उन्होंने ब्राह्मणों से वर-याचना में कहा कि जिस मंत्र के सम्पुटीकरण से हवन किया जा रहा है, उसी मंत्र के एक अक्षर में परिवर्तन कर दिया जाए। हनुमान की सेवा से गद्गद ब्राह्मणों ने उनकी वर-याचना स्वीकार कर ली। अक्षर परिवर्तन से मंत्र में अर्थांतर हो गया और बजाय विजय के रावण का विनाश हो गया।
‘अर्गलास्तोत्र’ का वह मूल मंत्र इस प्रकार है-
                  जय त्वं चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
                जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते॥
हनुमान जी ने वर याचना में ‘भूतार्तिहारिणि’ में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारण करने का निवेदन किया, जिस पर ब्राह्मणों ने ‘तथास्तु’ कहा। इससे सब कुछ उलट गया। ‘भूतार्तिहारिणि’ का अर्थ होता है- ‘संपूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली।’ जबकि अक्षर परिवर्तन से हो गया ‘भूतार्तिकारिणि।’ इसका शाब्दिक अर्थ होता है- ‘प्राणियों को पीडि़त करने वाली।’अर्थान्तर तथा अक्षर विपर्यय ने अपना प्रभाव दिखाया। विजय के बजाय दशानन का कुल समेत नाश हो गया। यह हनुमान जी के चातुर्य से ही संभव हुआ। इससे मंत्रों के सूक्ष्म ज्ञान पर बजरंगबली की मजबूत पकड़ का भी पता चलता है। वह श्रेष्ठ तांत्रिक भी थे। उनके बुद्धि चातुर्य से खुश होकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने एक बार सीता जी से यह कहा था कि यदि उन्हें मारुतिनंदन का सहयोग लंका विजय में न मिला होता, तो वह सीता वियोगी ही बने रहते।
                                                                                      जय श्रीराम  ।



Wednesday, 14 November 2012


दीपक का प्रकाश हर पल आपके जीवन मे नई रौशनी दे, बस यही शुभकामनाये है आपके लिए " दीपावली" के इस पावन अवसर पर ***शुभ दीपावली***आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिशुभकामनायें...

Sunday, 4 November 2012

'' मोर पंख का महत्त्व ''

                                                               मोर पंख का महत्त्व

.प्राचीन काल से ही नजर उतारने व भगवान् की  प्रतिमा के आगे वातावरण को पवित्र करने के लिए मोर पंख का  प्रयोग होता आया है.....निगम ग्रंथों में भगवान् शिव माँ पार्वती को कहते हैं कि देवी योगिनी मंडल के रहस्य वो नहीं जानता जिसने पक्षी शास्त्र में मोर का महत्त्व न जाना हो....तो पार्वती माता पूछती हैं कि भगवान मोर पंख का रहस्य क्या हैं तो शिव उत्तर देते हुए कहते हैं कि असुर कुल में संध्या नाम का प्रतापी दैत्य उत्त्पन्न हुआ.....लेकिन वो गुरु शुकाचार्य के कारण देवताओं का शत्रु बन बैठा.... वो परम शिव भक्त था.....उसने विन्द्यांचल पर्वत पर कठोर तप कर मुझे प्रसन्न किया....और अति बीर होने का वर प्राप्त किया.....ब्रह्मा जी भी उसके घोर तप से प्रसन्न हुए.....बर प्राप्त करने के बाद वो हर एक घर में अपना एक रूप बना कर विष्णु भक्तों को प्रताड़ित करने लगा....देवताओं पर आक्रमण कर उसने अलकापुरी जीत ली....देवताओं को बंदी बना वो शिव आराधना में फिर लीन हो गया....उसकी भक्ति के कारण भगवान् विष्णु भी उसका बध करने में समर्थ नहीं थे.......तो सभी देव देवताओं ने मिल कर एक रन नीति तैयारकी . जब में महासमाधि में लीन था....उस समय संध्या  दैत्य सागर के तट पर अपनी रानी के साथ विहार कर रहा था...तो देवताओं ने योगमाया को सहायता के लिए पुकारा....सभी मात्र शक्तियों के तेज से व नव ग्रहों सहित देवताओं के तेज से एक पक्षी पैदा हुया जो मोर कहलाया उस दिव्य मोर  के पंखों में सभी देवी देवता छुप  गए और शक्ति बढ़ाने लगे....अति विशाल मोर को आक्रमण करने आया देख संध्या दैत्य उससे युद्ध करने लगा लेकिन योगमाया भगवान् विष्णु सहित नव ग्रहों एवं देवताओं की  शक्ति से लड़ रही थी तो इसी कारण संध्या नाम का दैत्य युद्द में वीरगति को प्राप्त हुया......हे पार्वती तभी से मोर के पंखों में नव ग्रहों, देवी देवताओं सहित अन्य शक्तियों के अंश समाहित हो गए.......इस लिए पक्षी शास्त्र में मोर...गरुड़ और उल्लूक  के पंखों का महत्त्व हो गया.....किन्तु केवल वहीँ पंख इन गुणों को संजोता हैं जो स्वभावतय: पक्षी त्याग देता है....


बिभिन्न लाभ
मोर पंख वशीकरण...कार्यसिद्धि....भूत बाधा....रोग मुक्ति.....ग्रह वाधा....वास्तुदोष निग्रह आदि में बहुत ही महत्वपूर्ण  माना गया हैं...
सर पर धारण करने से विद्या लाभ मिलता है. सरस्वती माता के उपासक और विद्यार्थी पुस्तकों के मध्य अभिमंत्रित मोर पंख रख कर लाभ उठा सकते हैं.....मंत्र सिद्धि के लिए जपने वाली माला को मोर पंखों के बीच रखा जाता हैं....घर में अलग अलग स्थान पर मोर पंख रखने से घर का वास्तु बदला जा सकता है...नव ग्रहों की दशा से बचने के लिए भी होता है मोर पंख का प्रयोग......कक्ष में मोर पंख वातावरण को सकारात्मक बनाने में लाभदायक होता है......भूत प्रेत की  बाधा भी मोर पंख से दूर होती है.....
 ग्रह बाधा से मुक्ति
यदि आप पर कोई ग्रह अनिष्ट प्रभाव ले कर आया हो....आपको मंगल शनि या राहु केतु बार बार परेशान करते हों तो मोर पंख को 21 बार मंत्र सहित पानी के छीटे दीजिये और घर में स्थापित कीजिये...कुछ प्रयोग निम्न हैं
सूर्य की दशा से मुक्ति
रविवार के दिन नौ मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे रक्तबर्ण  या मेरून रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ नौ सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ सूर्याय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
दो नारियल सूर्य भगवान् को अर्पित करें
लड्डुओं का प्रसाद चढ़ाएं

चंद्रमा की दशा से मुक्ति

सोमवार के दिन आठ मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे सफेद रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ आठ सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ सोमाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
पांच पान के पत्ते  चंद्रमा को अर्पित करें
बर्फी का प्रसाद चढ़ाएं
मंगल की दशा से मुक्ति 

मंगलवार के दिन सात मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे लाल रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ सात सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ भू पुत्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
दो पीपल के पत्तों पर अक्षत रख कर मंगल ग्रह को अर्पित करें
बूंदी का प्रसाद चढ़ाएं
बुद्ध की दशा से मुक्ति

बुद्धबार के दिन छ: मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे हरे रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ छ: सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ बुधाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
जामुन अथवा बेरिया बुद्ध ग्रह को अर्पित करें
केले के पत्ते पर मीठी रोटी का प्रसाद चढ़ाएं

बृहस्पति की दशा से मुक्ति 

बीरवार के दिन पांच मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे पीले रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ पांच सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ ब्रहस्पते नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
ग्यारह केले बृहस्पति देवता को अर्पित करें
बेसन का प्रसाद बना कर चढ़ाएं
शुक्र की दशा से मुक्ति

शुक्रवार के दिन चार मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे गुलाबी रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ चार सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ शुक्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
तीन मीठे पान शुक्र देवता को अर्पित करें
गुड चने का प्रसाद बना कर चढ़ाएं
शनि की दशा से मुक्ति

शनिवार के दिन तीन मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे काले रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ तीन सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ शनैश्वराय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
तीन मिटटी के दिये तेल सहित शनि देवता को अर्पित करें
गुलाबजामुन या प्रसाद बना कर चढ़ाएं
राहु की दशा से मुक्ति 

शनिवार के दिन सूर्य उदय से पूर्व दो मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे भूरे रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ दो सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ राहवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
चौमुखा दिया जला कर राहु को अर्पित करें
कोई भी मीठा प्रसाद बना कर चढ़ाएं
केतु की दशा से मुक्ति  

शनिवार के दिन सूर्य अस्त होने के बाद एक मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे स्लेटी रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंख के साथ एक सुपारी रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ केतवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
पानी के दो कलश भर  कर राहु को अर्पित करें
फलों का प्रसाद चढ़ाएं
वास्तु में सुधार
घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें , मंत्र से अभिमंत्रित कर पंख के नीचे गणपति भगवान का चित्र या छोटी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए
मंत्र है-ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:

यदि पूजा का स्थान वास्तु के विपरीत है तो पूजा स्थान को इच्छानुसार मोर पंखों से सजाएँ, सभी मोर पंखो को कुमकुम का तिलक करें व शिवलिंग्  की स्थापना करें पूजा घर का दोष मिट जाएगा, प्रस्तुत मंत्र से मोर पंखों को अभी मंत्रित करें
मंत्र है-ॐ कूर्म पुरुषाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:

यदि रसोईघर वास्तु के अनुसार न बना हो तो दो मोर पंख रसोईघर में स्थापित करें, ध्यान रखें कि  भोजन बनाने वाले स्थान से दूर हो, दोनों पंखों के नीचे मौली बाँध लेँ, और गंगाजल से अभिमंत्रित करें
मंत्र-ॐ अन्नपूर्णाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:

और यदि शयन कक्ष वास्तु अनुसार न हो तो शैय्या के सात मोर पंखों के गुच्छे स्थापित करें, मौली के साथ कौड़ियाँ बाँध कर पंखों के मध्य भाग में सजाएं, सिराहने की और ही स्थापित करें, स्थापना का मंत्र है
मंत्र-ॐ स्वप्नेश्वरी देव्यै नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:




Thursday, 1 November 2012

'' दौरा करती हैं लक्ष्मी शरद पूर्णिमा के दिन ''

 दीपावली के ठीक 15 दिन पहले शरद पूर्णिमा आती है। इस समय तक दशहरा समाप्त हो जाता है। मस्ती करने वालों का पूरा ध्यान दीवाली की मिठाइयों और पटाखों पर चला जाता है। मूलत: यह त्योहार फसलों से संबंधित है। कहा जाता है कि इस रात धन और उन्नति की देवी लक्ष्मी सारे घरों का दौरा करती है और साथ ही सारे बच्चों, बूढ़ों और जवान को अच्छी किस्मत के लिए गुडलक कहती है।इस विशेष रात को कोजागिरी भी कहा जाता है। इस रात को बर्फ और केसरियायुक्त दूध पिया जाता है। इस पूरे चंद्रमा वाली रात को नवन्ना पूर्णिमा कहा जाता है। ऐसा आभास होता है कि नए भोजन के स्वागत के लिए चांदनी रात अपना दामन पसारे हुए है। इस अवसर पर भगवान को नया उपजाया हुआ चावल भेंट करते हैं और पूर्ण रूप से खिले चांद के सामने लैम्प जलाते हैं। शरद पूर्णिमा किसानों की जिंदगियों में दो तरह का महत्वपूर्ण संदेश लाती है। पहला जो कड़ी मेहनत करेगा भगवान उसे अवश्य फल प्रदान करेगा और दूसरा यह कि प्रभु मनुष्य के द्वारा की जा रही सारी गतिविधियों पर नजर रखता है। बहुत सारे दुर्गा मंदिरों में शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गीत संगीत से मां दुर्गा को जगाया जाता है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा नौ दिनों तक महिषासुर से लड़कर थकने के बाद सो गई थीं।
शरद पूर्णिमा वर्त कथा
आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा की कथा कुछ इस प्रकार से है- एक साहूकार के दो पुत्रियां थी. दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी, परन्तु बड़ी पुत्री विधिपूर्वक पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत ही किया करती थी. परिणामस्वरूप साहूकार के छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से अपने संतानों के मरने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले समय में तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत किया करती थी, जिस कारणवश तुम्हारी सभी संतानें पैदा होते ही मर जाती है. फिर छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका उपाय पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि तुम विधिपूर्वक पूर्णिमा का व्रत करोगी, तब तुम्हारे संतान जीवित रह सकते हैं.साहूकार की छोटी कन्या ने उन भद्रजनों की सलाह पर पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक संपन्न किया. फलस्वरू
प उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई परन्तु वह शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया. तब छोटी पुत्री ने उस लड़के को पीढ़ा पर लिटाकर ऊपर से पकड़ा ढ़क दिया. फिर अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आई और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. बड़ी बहन जब पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा उस मृत बच्चे को छू गया, बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. बड़ी बहन बोली- तुम तो मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से तो तुम्हारा यह बच्चा यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली- बहन तुम नहीं जानती, यह तो पहले से ही मरा हुआ था, तुम्हारे भाग्य से ही फिर से जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. इस घटना के उपरान्त ही नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया.
शरद पूर्णिमा व्रत विधि
इस दिन प्रात:काल में व्रत कर अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इस पूर्णिमा को रात में ऎरावत हाथी पर चढे हुए इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा कर दीपावली की तरह रोशनी कि जाती है. इस दिन कम से कम 100 दीपक और अधिक से अधिक एक लाख तक हों. इस तरह दीपक जलाकर अगले दिन इन्द्र देव का पूजन किया जाता है. ब्राह्माणों को शक्कर में घी मिला हुआ, ओर खीर का भोजन करायें. धोती, गमच्छा, आदि वस्त्र और दीपक (अगर सम्भव हों, तो सोने का) तथा दक्षिणा दान करें. लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. यह माना जाता है, कि इस रात को इन्द्र और लक्ष्मी जी यह देखते है, कि कौन जाग रहा है, इसलिये इस दिन जागरण करने वाले की धन -संपति में वृ्द्धि होती है. इस व्रत को मुख्य रुप से स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. उपवास करने वाली स्त्रियां इस दिन लकडी की चौकी पर सातिया बनाकर पानी का लोटा भरकर रखती है. एक गिलास में गेहूं भरकर उसके ऊपर रुपया रखा जाता है. और गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कहानी सुनी जाती है.गिलास और रुपया कथा कहने वाली स्त्रियों को पैर छुकर दिये जाते है. कहानी सुने हुए पानी का रात को चन्द्रमा को अर्ध्य देना चाहिए. और इसके बाद ही भोजन करना चाहिए. मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है. विशेष रुप से इस दिन तरबूज के दो टुकडे करके रखे जाते है. साथ ही कोई भी एक ऋतु का फल रखा और खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखा जाता है. ऎसा कहा जाता है, कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृ्त बरसता है.