जाता है
भगवान किसी समय प्रेमभरी दृष्टि से जीव का आकर्षण करते है, तो किसी समय मनुष्य के जीवन में दुःख प्रसंग खड़े करके उसको स्वयं कि तरफ खींचते है, जीव के कल्याण के लिए भगवान दुःख खड़ा करते है. कितने ही लोग ऐसा समझते है -"मै वैष्णव हु, सेवा करता हु, गरीबो का सम्मान करता हु, इसलिए मुझे कभी बुखार नहीं आवेगा, मेरा शरीर नहीं बिगड़ेगा, मुझे कोई दुःख नहीं होगा. ऍसी समझ सत्य नहीं है.
अनेक बार ऐसा होता है कि अति दुःख में शान्ति से बैठकर परमात्मा का स्मरण करे, तब उसकी बुद्धि में वह ज्ञान स्फुरण होता है - जो अनेक ग्रंथो के पढने पर इसे नहीं मिल पाता. दुःख में चतुरता आती है, साधरण मनुष्य को बहुत सुख में चतुरता आती है नहीं.
जीव जगत में आता है तब पाप और पुण्य दोनों लेकर आता है, पुण्य का फल सुख है और पाप का फल दुःख है, ऐसा कोई जीव नहीं जो अकेले पुण्य लेकर ही आया हो. सब ही पाप और पुण्य - दोनों लेकर आये होते है. और इस प्रकार से सबको सुख और दुःख - दोनों प्राप्त होते है. सभी अनुकूलता मुझको मिलनी चाहिए ऐसे आशा रखी व्यर्थ है
भगवान किसी समय प्रेमभरी दृष्टि से जीव का आकर्षण करते है, तो किसी समय मनुष्य के जीवन में दुःख प्रसंग खड़े करके उसको स्वयं कि तरफ खींचते है, जीव के कल्याण के लिए भगवान दुःख खड़ा करते है. कितने ही लोग ऐसा समझते है -"मै वैष्णव हु, सेवा करता हु, गरीबो का सम्मान करता हु, इसलिए मुझे कभी बुखार नहीं आवेगा, मेरा शरीर नहीं बिगड़ेगा, मुझे कोई दुःख नहीं होगा. ऍसी समझ सत्य नहीं है.
अनेक बार ऐसा होता है कि अति दुःख में शान्ति से बैठकर परमात्मा का स्मरण करे, तब उसकी बुद्धि में वह ज्ञान स्फुरण होता है - जो अनेक ग्रंथो के पढने पर इसे नहीं मिल पाता. दुःख में चतुरता आती है, साधरण मनुष्य को बहुत सुख में चतुरता आती है नहीं.
जीव जगत में आता है तब पाप और पुण्य दोनों लेकर आता है, पुण्य का फल सुख है और पाप का फल दुःख है, ऐसा कोई जीव नहीं जो अकेले पुण्य लेकर ही आया हो. सब ही पाप और पुण्य - दोनों लेकर आये होते है. और इस प्रकार से सबको सुख और दुःख - दोनों प्राप्त होते है. सभी अनुकूलता मुझको मिलनी चाहिए ऐसे आशा रखी व्यर्थ है
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