Sponcered Links

Thursday, 30 August 2012

'' सुख - दुःख ''


सुख - दुःख :-
तुम्हे भक्ति करनी हो तो भगवान से कहना कि मेरे जीवन में एकाध , दो तो दुःख मुझको देना. मुझको बहुत सुख मत देना, भागवत में कथा आती है कि कुंती जी ने परमात्मा से दुःख माँगा था. " हे नाथ! हमको पग-पग पर विपित्तिया आती रहे, ऐसा मे तुमसे मांगती हु. कारण कि विपिती में ही तुम्हारा स्मरण होता है. स्मरण से तुम्हारे दर्शन होते है और तुम्हारे दर्शन हो तो जन्म-मृत्यु के चक्कर में आना नहीं पड़ता "
यह जीव सब प्रकार से सुखी हो - यह ठीक नहीं. एकाध दुःख तो मनुष्य के जीवन में होना ही चाहिए जिससे दुःख में इसको विश्वास हो "भगवान के बिना मेरा कोई नहीं" सगे-सम्बन्धी का प्रेम कपट से भरा हुआ है, उसकी खबर दुःख में ही पड़ती है .
जीवन में दुःख होवे तो मनुष्य दीन बनता है. मनुष्य बहुत सुख पचा नहीं सकता. मनुष्य को बहुत सुख मिले तो ये प्रमादी होता है, बहुत सुख में यह भान भूल जाता है, सब प्रकार से सुखी हो तो वह भान जल्दी भूलता है, विलासी हो जाता है, अभिमानी हो जाता है, भगवान को भूल जाता है, अनेक प्रकार के दुर्गुण उसमे आ जाते है, अंत में उसका पतन हो

जाता है
भगवान किसी समय प्रेमभरी दृष्टि से जीव का आकर्षण करते है, तो किसी समय मनुष्य के जीवन में दुःख प्रसंग खड़े करके उसको स्वयं कि तरफ खींचते है, जीव के कल्याण के लिए भगवान दुःख खड़ा करते है. कितने ही लोग ऐसा समझते है -"मै वैष्णव हु, सेवा करता हु, गरीबो का सम्मान करता हु, इसलिए मुझे कभी बुखार नहीं आवेगा, मेरा शरीर नहीं बिगड़ेगा, मुझे कोई दुःख नहीं होगा. ऍसी समझ सत्य नहीं है.
अनेक बार ऐसा होता है कि अति दुःख में शान्ति से बैठकर परमात्मा का स्मरण करे, तब उसकी बुद्धि में वह ज्ञान स्फुरण होता है - जो अनेक ग्रंथो के पढने पर इसे नहीं मिल पाता. दुःख में चतुरता आती है, साधरण मनुष्य को बहुत सुख में चतुरता आती है नहीं.
जीव जगत में आता है तब पाप और पुण्य दोनों लेकर आता है, पुण्य का फल सुख है और पाप का फल दुःख है, ऐसा कोई जीव नहीं जो अकेले पुण्य लेकर ही आया हो. सब ही पाप और पुण्य - दोनों लेकर आये होते है. और इस प्रकार से सबको सुख और दुःख - दोनों प्राप्त होते है. सभी अनुकूलता मुझको मिलनी चाहिए ऐसे आशा रखी व्यर्थ है
                                                                                         
 
                  

No comments:

Post a Comment