'किसी समय स्वर्ग के राजा इंद्र ने अपने गुरु के प्रति कोई अपराध किया तो गुरु ने उन्हें
सुअर योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। जब इंद्र सुअर बनकर पृथ्वी लोक
पर चले आए तो स्वर्ग का सिंहासन खाली हो गया। यह स्थिति देखकर ब्रह्मा
पृथ्वी पर आए और उन्होंने सुअर रूपी इंद्र से कहा, भद्र! तुम पृथ्वी पर
सुअर बनकर आए हो। अब मैं तुम्हारा उद्धार करने आया हूं। तुम तुरंत मेरे साथ
चलो। लेकिन सुअर रूपी इंद्र हाथ जोड़ कर खड़े हो गए, मैं आपके साथ नहीं जा
सकता। मुझ पर अनेक उत्तरदायित्व हैं। मेरे बच्चे हैं, पत्नी है और यह अपना
सुंदर शूकर समाज है।
इसी प्रकार श्रीकृष्ण आते हैं और हमसे कहते हैं,
तुम दुखों से भरे इस भौतिक संसार में क्या कर रहे हो? तुम मेरे पास चले आओ
तो मैं तुम्हारी हर प्रकार से रक्षा करूंगा। किंतु हम कृष्ण के उपदशों पर
ध्यान नहीं देते और सोचते हैं, हमें यहां कई दूसरे कहीं ज्यादा जरूरी कार्य
करने हैं। यही विस्मृति है।विस्मृति का कारण है बार-बार मृत्यु का ग्रास
बनना। यह वास्तविकता है कि पिछले जीवन में हमें अन्य परिवारों, माताओं,
पिताओं अथवा देशों में अन्य शरीर मिले थे, किंतु हमें कुछ याद नहीं है। हो
सकता है कि हम कुत्ते या बिल्ली, मनुष्य या देवता रहे हों, किंतु अब हमें
कुछ भी याद नहीं है। विस्मृति के चलते हम भूल जाते हैं कि पिछले जन्म अथवा
जन्मों में हम इसी प्रकार झूठी आशा अर्थात मृगतृष्णा के पीछे भागते रहे कि
अमुक कार्य करने से हम सुखी होंगे, अमुक कार्य करने से नित्य आनंद की
प्राप्ति होगी। किंतु इसी विस्मृति के कारण हम अपने वर्तमान का अमूल्य मानव
जीवन भी व्यर्थ के कार्यों में गवां रहे हैं और कष्ट पा रहे हैं। तो क्यों
न भगवद् भजन कर हम विस्मृति को सदा के लिए अलविदा कह दें।