Thursday, 7 September 2017
(((((( प्रेम के भूखे ))))))
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वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी । नाम था कांता बाई...
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बिहारी जी को अपना लाला कहा करती थी उन्हें लाड दुलार से रखा करती और दिन रात उनकी सेवा में लीन रहती थी।
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क्या मजाल कि उनके लल्ला को जरा भी तकलीफ हो जाए।
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एक दिन की बात है कांता बाई अपने लल्ला को विश्राम करवा कर खुद भी तनिक देर विश्राम करने लगी तभी उसे जोर से हिचकिया आने लगी ...
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और वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था ...
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तभी कांता बाई कि पुत्री उसके घर पे आई जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था तब कांता बाई की हिचकिया रुक गयी।
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अच्छा महसूस करने लग गयी तो उसने अपनी पुत्री को सारा वृत्तांत सुनाया कि कैसे वो हिच कियो में बेचैन हो गयी
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तब पुत्री ने कहा कि माँ मैं तुम्हे सच्चे मन से याद कर रही थी उसी के कारण तुम्हे हिचकिया आ रही थी और अब जब मैं आ गयी हू तो तुम्हारी हिचकिया भी बंद हो चुकी है।
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कांता बाई हैरान रह गयी कि ऐसा भी भला होता है ? तब पुत्री ने कहा हाँ माँ ऐसा ही होता है जब भी हम किसी अपने को मन से याद करते है तो हमारे अपने को हिचकिया आने लगती है।
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तब कांता बाई ने सोचा कि मैं तो अपने ठाकुर को हर पल याद करती रहती हू यानी मेरे लल्ला को भी हिचकिया आती होंगी ??
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हाय मेरा छोटा सा लल्ला हिचकियो में कितना बेचैन हो जाता होगा !
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नहीं ऐसा नहीं होगा अब से मैं अपने लल्ला को जरा भी परेशान नहीं होने दूंगी और ...
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उसी दिन से कांता बाई ने ठाकुर को याद करना छोड़ दिया।
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अपने लल्ला को भी अपनी पुत्री को ही दे दिया सेवा करने के लिए।
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लेकिन कांता बाई ने एक पल के लिए भी अपने लल्ला को याद नहीं किया ...
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और ऐसा करते करते हफ्ते बीत गए और फिर एक दिन ...
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जब कांता बाई सो रही थी तो साक्षात बांके बिहारी कांता बाई के सपने में आते है और कांता बाई के पैर पकड़ कर ख़ुशी के आंसू रोने लगते है....?
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कांता बाई फौरन जाग जाती है और उठ कर प्रणाम करते हुए रोने लगती है और कहती है कि...
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प्रभु आप तो उन को भी नहीं मिल पाते जो समाधि लगाकर निरंतर आपका ध्यान करते रहते है...
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फिर मैं पापिन जिसने आपको याद भी करना छोड़ दिया है आप उसे दर्शन देने कैसे आ गए ??
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तब बिहारी जी ने मुस्कुरा कर कहा-
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माँ कोई भी मुझे याद करता है तो या तो उसके पीछे किसी वस्तु का स्वार्थ होता है
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या फिर कोई साधू ही जब मुझे याद करता है तो उसके पीछे भी उसका मुक्ति पाने का स्वार्थ छिपा होता है
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लेकिन धन्य हो माँ तुम ऐसी पहली भक्त हो जिसने ये सोचकर मुझे याद करना छोड़ दिया कि कहीं मुझे हिचकिया आती होंगी।
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मेरी इतनी परवाह करने वाली माँ मैंने पहली बार देखी है
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तभी कांता बाई अपने मिटटी के शरीर को छोड़ कर अपने लल्ला में ही लीन हो जाती है।
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इसलिए बंधुओ वो ठाकुर तुम्हारी भक्ति और चढ़ावे के भी भूखे नहीं है वो तो केवल तुम्हारे प्रेम के भूखे है उनसे प्रेम करना सीखो।
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उनसे केवल और केवल किशोरी जी ही प्रेम करना सिखा सकती है।
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((((((( जय जय श्री राधे ))))))))
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