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Monday, 8 October 2012

" पारद लक्ष्मी "

 आज बात करेगे - ऐसी " देवी " की - जिसकी जरूरत सभी को है आज भारतवर्ष में तो इसको लेकर खलबली मची हुई है
  जी हां = मै बात कर रहा हु = धन की देवी ="माँ लक्ष्मी " की - आज बताता हूँ - " पारद लक्ष्मी " के बारे में =
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1 = अगर आप ब्यवसायिक समस्याओ - सरकारी समस्याओ से ग्रसित है - तो " ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं " मंत्र का 108 जाप - और प्रत्येक मंत्र के साथ एक - एक लाल फुल चढाते जाये - घी का दीपक - अगरवत्ती जलाना मत भूलियेगा = आर्थिक समस्याओ से मुक्ति तुरंत =
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2 = अगर आपको नोकरी नहीं मिल रही है - और कोई भी काम मिलने में बाधा आ रही है तो - " ॐ श्रीं विघ्न हराय पारदेश्वरी महालक्ष्म्ये नमः " का एक माला जाप " कमलगट्टे " की माला से प्रतिदिन करे =
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3 = अगर आपका प्रमोशन नहीं हो रहा है = " श्रीं ऐं फट क्लीं " की एक माला जाप " कमलगट्टे " की माला से प्रतिदिन करे =
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4 = क्या आप जानते है = माँ लक्ष्मी को दूध से स्नान कराने से शक्ति और बल की प्राप्ति होती है =
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5 = दही का स्नान कराने से संपत्ति में बढ़ोतरी होती है =
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6 = तिल स्नान कराने से धन की प्राप्ति होती है =
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7 = घी का स्नान से आयु - आरोग्य और एश्वर्या की प्राप्ति होती है =
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8 = माँ लक्ष्मी की आराधना में = कमल फुल - कौड़ी - शंख आदि रखना मत भूलियेगा ==




Sunday, 7 October 2012

पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करना आवश्यक क्यों?

ब्रह्मपुराण के मतानुसार अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक किये जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते है, श्राद्ध से ही श्रद्धा कायम रहती है. कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्दभावना की लहरें पहुंचाता है. ये लहरें, तरंगे ना केवल जीवित को बल्कि मृतक को भी तृप्त करती है. श्राद्ध द्वारा मृतात्मा को शांति-सद्गति मोक्ष मिलने की मान्यता के पीछे यही तथ्य है.. इसके आलावा श्राद्धकर्ता को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है
मनुस्मृति में लिखा है. :- मनुष्य श्रद्धावान होकर जो - जो पदार्थ अच्छी तरह विधि पूर्वक पितरो को देता है, वह - वह परलोक में पितरों को आनंद और अक्षेय रूप में प्राप्त होता है .
ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज सभी पितरो को अपने यह यहाँ 

 से छोड़ देते है, ताकि वे अपनी संतान से श्राद्ध के निमित्त भोजन ग्रेहण कर ले. इस माह में श्राद्ध ना करने वालों के पितृ अतृप्त उन्हें शाप देकर पितृ लोक को चले जाते है. इससे आने वाली पीढियो को भारी कष्ट उठाना पडता है, उसे ही पितृदोष कहते है. पितृ जन्य समस्त दोषों कि शांति के लिए पूर्वजों कि मृत्यु तिथि के दिन श्राद्ध कर्म किया जाता है, इसमें ब्राह्मणों को भोजन कराकर तृप्त करने का विधान है, श्राद्ध करने वाले व्याक्ति को क्या फल मिलता है , इस बारे में गरुंडपुराण में कहा गया है :-
श्राद्ध कर्म करने से संतुष्ट होकर पितृ मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, मोक्ष , स्वर्ग, कीर्ति, पुष्ठि, बल, वैभव, पशुधन, सुख, धन और धान्य वृद्धि का आशीष प्रदान करते है.
यमस्मृति 36.37 में लिखा है कि पिता, दादा और परदादा ये तीनो ही श्राद्ध की ऐसे आशा करते है , जैसे वृक्ष पर रहते हुए पक्षी वृक्ष में फल लगने की आशा करते है, उन्हें आशा रहती है कि शहद , दूध व् खीर से हमारी संतान हमारे लिए श्राद्ध करेगी
देवताओ के लिए जो हव्य और पितरो के लिए कव्य दिया जाता है, ये दोनों देवताओ और पितरो को कैसे मिलता है , इसके सम्बंध में यमराज ने अपनी स्मृति में कहा है :- मन्त्र्वेक्त्ता ब्रह्मण श्राद्ध के अन्न के जितने कौर अपने पेट में डालता है, उन कौरों को श्राद्धकर्ता का पिता ब्राह्मण के शरीर में स्थित होकर पा लेता है.
विष्णुपुराण में लिखा है की श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से केवल पितृगण ही तृप्त नहीं होते, बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, आशिवनिकुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु , वायु, ऋषि , मनुष्य, पशु, पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी तृप्त होते है.
अब बोलिए जय माता दी, जय पितरो की.

Thursday, 4 October 2012

'' एक सच्चा दोस्त ''

इंसान को दोस्ती बडी ही सोच समझ कर करनी चाहिए । एक सच्चा दोस्त वही है जो आपकी खुशी मे खुश होने के साथ साथ आपके दुखों को भी अपना बना ले। जो मुसीबत में एक मांझी की तरह तरह आपकी नैया को पार लगाने में आपकी मदद करे।ऐसा ही एक उदाहरण है कृष्ण और द्रोपदी की दोस्ती।एक बार पाण्डवों ने राजसूय यज्ञ में श्री कृष्ण को प्रथम पद प्रदान किया। शिशुपाल ने इस बात पर अपना विरोध जताया और श्री कृष्ण को खूब भला बुरा कहा। तब श्री कृष्ण ने अपने सुर्दशन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया। इस काम में असावधानी के कारण उनकी उंगली से खून बहने लगा सब घबराकर इधर उधर देखने लगे उसी समय द्रोपदी ने अपनी साड़ी को फाड़ कर पटटी बांधी।एक बार पाण्डव द्रोपदी को जुए में दाव पर लगाकर हार गए। सारे कौरवों ने भरी सभा में द्रोपदी का खूब अपमान किया। दुशाषन जब द्रोपदी की साड़ी खींचने लगा तब उसकी लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने स्वयं द्रोपदी की चीर बड़ाकर उसकी लाज बचाई। इसलिए कहते हैं कि मुसीबत के समय जो आपके साथ होता है वही आपका सच्चा दोस्त होता है।

Wednesday, 3 October 2012

'' हनुमान जी का जन्म ''


हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना(एक नारी वानर) के पुत्र के रूप मे हुआ था। अंजना असल मे पुन्जिकस्थला नाम की एक अप्सरा थीं, मगर एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। अंजना केसरी की पत्नी थीं। केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, "केसरी" का अर्थ होता है सिंह। उन्हे "कुंजर सुदान"(हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है।केसरी के संग मे अंजना ने भगवान शिव कि बहुत कठोर तपस्या की जिसके फ़लस्वरूप अंजना ने हनुमान(शिव के अन्श) को जन्म दिया।जिस समय अंजना शिव की आराधना कर रहीं थीं उसी समय अयोध्या-नरेश दशरथ, पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्र कामना यज्ञ करवा रहे थे। फ़लस्वरूप उन्हे एक दिव्य फल प्राप्त हुआ जिसे उनकी रानियों ने बराबर हिस्सों मे बाँटकर ग्रहण किया। इसी के फ़लस्वरूप उन्हे राम, लषन, भरत और शत्रुघन पुत्र रूप मे प्राप्त हुए।विधि का विधान ही कहेंगे कि उस दिव्य फ़ल का छोटा सा टुकडा एक चील काट के ले गई और उसी वन के ऊपर से उडते हुए(जहाँ अंजना और केसरी तपस्या कर रहे थे) चील के मुँह से वो टुकडा नीचे गिर गया। उस टुकडे को पवन देव ने अपने प्रभाव से याचक बनी हुई अंजना के हाथों मे गिरा दिया। ईश्वर का वरदान समझकर अंजना ने उसे ग्रहण कर लिया जिसके फ़लस्वरूप उन्होंने पुत्र के रूप मे हनुमान को जन्म दिया।अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है 'अंजना द्वारा उत्पन्न...............

Tuesday, 2 October 2012

'' श्राद्ध कर्म की बहुत ही सरल विधि ''

आइये जानते है की किस विधि से या कैसे करे श्राद्ध ??....
जिस तिथि को आपको घर मे श्राद्ध करना हो उस दिन प्रात: काल जल्दी उठ कर स्नान आदी  से निवर्त हो जाये . पितरो के निम्मित भगवन सूर्य देव को जल अर्पण करे और अपने नित्य नियम की पूजा करके अपने रसोई घर की शुद्ध जल से साफ़ सफाई करे. और पितरो की सुरुचि यानि उनके पसंद का स्वादिष्ट भोजन बनाये . भोजन को एक थाली मे रख ले और पञ्च बलि के लिए पांच जगह २- २ पुड़ी या रोटी जो भी आपने बनायीं है उस पर थोड़ी सी खीर रख कर पञ्च पत्तलों पर रख ले . एक उपला यानि गाय के गोबर का कंडे को गरम करके किसी पात्र मे रख दे. अब आप अपने घर की दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाये . अपने सामने अपने पितरो की तस्वीर को एक चोकी पर स्थापित कर दे . एक महत्वपूर्ण बात जो मै बताना चाहता हू वो यह हैकी पितरो की पूजा मे रोली और चावल वर्जित है। । रोली रजोगुणी होने के कारण पितरों को नहीं चढ़ती, चंदन सतोगुणी होता है अतः भगवान शिव की तरह पितरों को भी चन्दन अर्पण किया जाता है। इसके अलावा पितरों को सफेद फूल चढ़ाए जाते हैं तो आप भी अपने पितरो को चन्दन का टिका लगाये और सफ़ेद पुष्प अर्पण करे . उनके समक्ष २ अगरबत्ती और शुद्ध घी का दीपक जलाये. हाथ जोड़ कर अपने पितरो से प्रार्थना करे और जाने अनजाने मे हुई गलती के लिए माफ़ी मांगे , अपने घर की सुख शांति और सम्रिध्ही का आशीर्वाद मांगे और उन्हें भोजन का निमंत्रण दे. भोजन की थाली और पांच जगह जो आपने पितरो की बलि रखी है उसे पितरो की तस्वीर के सामने रख दे .
गरम उपला यानि कंडे पर आप शुद्ध घी और भोजन की थाली मे से थोडा थोडा समस्त पकवानों को लेकर शुद्ध घी मे मिलाकर उपले (कंडे ) पर अपने पितरो को भोग अर्पण करे जिसे हम धूप भी कहते है . मुख्य बात यह ध्यान रखने की है की जब तक आप इस प्रकार अपने पितरो को इस प्रकार धूप नहीं देंगे तब तक आपके घर के पितृ देवता भोजन ग्रहण नहीं करते है. उस धूप से उठने वाली सुगंध से ही वो भोजन को ग्रहण करते है . धूप देने के बाद अपने सीधे हाथ मे जल लेकर भोजन की थाली के चारो और तीन भर घुमा कर अगुठे की तरफ से जल जमीन पर छोड़ दे. आप मे से बहुत से दर्शक ऐसे होंगे जीने यह नहीं पता होगा की जब हम अंगुलियों की तरफ से जल छोड़ते है तो वो जल देवता ग्रहण करते है और जब हम अंगूठे की तरफ से जल छोड़ते है तो वह जल आपके पितृ ग्रहण करते है . बहुत छोटी सी किन्तु आपक सभी के लिए बहुत ज्ञानवर्धक बात है यह. तो अगर आप चाहते है ही आपके पितृ आपका दिया हुआ भोजन और जल ग्रहण करे तो इस विधि से धूप दे और जल को अंगूठे की तरफ से छोड़े. एक बार पुन: उनसे मंगल आशीर्वाद की कामना करे . पांच बलि मे से एक एक बलि क्रमश गाय को , कुत्ते को , कौए को, एक किसी भी मांगने वाले को और एक चींटी को दे दे .भोजन की थाली घर मे बुलाये ब्राह्मिन के सामने रखे . उसे आत्मीयता से भोजन करवाए . भोजन के पश्चात ब्राह्मिन देवता के चरण छुकर आशीर्वाद प्राप्त करे और ब्राह्मिन देवता को यथा शक्ति दक्षिणा, वस्त्र आदि दे कर विदा करे ..................



Monday, 1 October 2012

'' 2012 मे श्राद्ध की तिथियां ''




श्राद्ध की तिथि
पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 29 सितम्बर शनिवार
प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध 30 सितम्बर रविवार
 द्वितीया तिथि का श्राद्ध 1 अक्तूबर सोमवार
तृतीया तिथि का श्राद्ध 2 अक्तूबर मंगलवार (दिन में 11.48 के बाद )
चतुर्थी तिथि का श्राद्ध 4 अक्तूबर बृहस्पतिवार
पंचमी तिथि का श्राद्ध 5 अक्तूबर शुक्रवार
षष्ठी तिथि का श्राद्ध 6 अक्तूबर शनिवार
सप्तमी तिथि का श्राद्ध 7 अक्तूबर रविवार
अष्टमी तिथि का श्राद्ध 8 अक्तूबर सोमवार
नवमी तिथि का श्राद्ध 9 अक्तूबर मंगलवार
दशमी तिथि का श्राद्ध 10 अक्तूबर बुधवार
एकादशी तिथि का श्राद्ध 11 अक्तूबर बृहस्पतिवार
द्वादशी तिथि(सन्यासियों) का श्राद्ध 12 अक्तूबर शुक्रवार
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध 13 अक्तूबर शनिवार
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध 14 अक्तूबर रविवार
अमावस/सर्वपितृ श्राद्ध 15 अक्तूबर सोमवार



चतुर्दशी तिथि के श्राद्ध की विशेषता
  
ऎसे सभी जो आज किसी कारण वश हमारे मध्य नहीं तथा इस लोक को छोड कर परलोक में वास कर रहे है, तथा इस लोक को छोडने का कारण अगर शस्त्र, विष या दुर्घटना आदि हो तो ऎसे पूर्वजों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है.
 चतुर्दशी तिथि में सामान्य रूप मे लोक छोडने वाले व्यक्तियों का श्राद्ध अमावस्या तिथि में करने का विधान है.

'' श्राद्ध के लिए कुछ नियम ''

श्राद्ध के लिए कुछ नियम :
     दूसरेकी भूमिपर श्राद्ध नहीं करना चाहिये। जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमन्दिर – ये दूसरेकी भुमिमें नहीं आते; क्योंकि इनपर किसीका स्वामित्व नहीं होता ।
- कूर्मपुराण
श्राद्धमें पितरोंकी तृप्ति ब्राह्मणोंके द्वारा ही होती है।
-स्कन्दपुराण
श्राद्धकालमें आये हुए अतिथिका अवश्य सत्कार करे। उस समय अतिथिका सत्कार न करनेसे वह श्राद्ध कर्मके सम्पूर्ण फलको नष्ट कर देता है।
- वराहपुराण
जहाँ रजस्वला स्त्री, चाण्डाल और सुअर श्राद्धके अन्नपर दृष्टि डाल देते हैं, वह अन्न प्रेत ही ग्रहण करते हैं।
-स्कन्दपुराण
श्राद्धमें पहले अग्निको ही भाग अर्पित किया जाता है। अग्निमें हवन करनेके बाद जो पितरोंके निमित्त पिण्डदान किया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस दूषित नहीं करते।
- महाभारत, अनु. ९२।११-१२
जो अज्ञानी मनुष्य अपने घर श्राद्ध करके फिर दुसरे के घर भोजन करता है, वह पाप का भागी होता है और उसे श्राद्धका फल नहीं मिलता।
- स्कन्दपुराण
एक हाथसे लाया गया जो अन्न (अन्नपात्र) ब्राह्मणोंके आगे परोसा जाता है, उस अन्नको राक्षस छीन लेते हैं।
- मनुस्मृति ३।२२५
वस्त्रके बिना कोई क्रिया, यज्ञ, वेदाध्ययन और तपस्या नहीं होती । अतः श्राद्धकालमें वस्त्रका दान विशेषरुपसे करना चाहिये।
-ब्रह्मपुराण
श्राद्ध और हवनके समय तो एक हाथसे पिण्ड एवं आहुति दे, पर तर्पणमें दोनों हाथोंसे जल देना चाहिये।
- पद्मपुराण,नारदपुराण,मत्स्यपुराण,ब्रह्मपुराण,लघुयमस्मृति
श्राद्धके पिण्डोंको गौ, ब्राह्मण या बकरीको खिला दे अथवा अग्नि या पानीमें छोड दे ।
- मनुस्मृति ३।२६०, महाभारत,अनु. १४५
जो सफेद तिलोंसे पितरोंका तर्पण करता है, उसका किया हुआ तर्पण व्यर्थ होता है ।
- पद्मपुराण
रात्रिमें श्राद्ध नहीं करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है। दोनों सन्ध्याओंमें तथा पूर्वाह्णकालमें भी श्राद्ध नहीं करना चाहिये ।
- मनुस्मृति ३।२८०