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Friday, 17 August 2012

'' भगवान माखन क्यों चुराते है ? ''

भगवान माखन क्यों चुराते है ?

भगवान की इस दिव्य लीला माखन चोरी का रहस्य न जानने के कारण ही कुछ लोग इसे आदर्श के विपरीत बतलाते है.उन्हे पहले समझना`चाहिये चोरी क्या वस्तु है,वह किसकी होती है,और कौन करता है.चोरी उसे कहते है जब किसी दूसरे की कोई चीज, उसकी इच्छा के बिना, उसके अनजाने में ओर आगे भी वह जान ना पाए - ऐसी इच्छा रखकर ले ली जाती है. भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के घर माखन लेते थे उनकी इच्छा से,गोपियों के अनजाने में नहीं -उनकी जान में,उनके देखते-देखते और आगे जनाने की तो बात ही नहीं -उनके सामने ही दौडते हुए निकल जाते थे.


दूसरी बात महत्त्व की ये है कि संसार में या संसार के बाहर ऐसी कौन-सी वस्तु है, जो श्रीभगवान की नहीं है और वे उसकी चोरी करते है. गोपियों का तो सर्वस्व श्रीभगवान् का था ही, सारा जगत् ही उनका है. वे भला, किसकी चोरी कर सकते है ? हाँ चोर तो वास्तव में वे लोग है,जो भगवान की वस्तु को अपनी मानकर ममता-आसक्ति में फँसे रहते है और दंड के पात्र बनते है


'श्रीकृष्णगतप्राणा', 'श्रीकृष्ण रसभावितमति' गोपियों के मन की क्या स्थिति थी. गोपियों का तन-मन- धन - सभी कुछ प्राणप्रियतम श्रीकृष्ण का था.वे संसार में जीती थी श्रीकृष्ण के लिये,घर में रहती थी श्रीकृष्ण के लिये और घर के सारे काम करती थी श्रीकृष्ण के लिये उनकी निर्मल और योगिन्द्रदुर्लभ पवित्र बुद्धि में श्रीकृष्ण के सिवा अपना कुछ था ही नहीं.श्रीकृष्ण के लिये ही ,श्रीकृष्ण को सुख पहुँचाने के लिये ही श्रीकृष्ण की निज सामग्री से ही श्रीकृष्ण को पूजकर -श्रीकृष्ण को सुखी देखकर वे सुखी होती थी.प्रात:काल निंद्रा टूटने से लेकर रात को सोने तक वे जो कुछ करती थी,सब श्रीकृष्ण की प्रीति के लिये ही करती थी यहाँ तक कि उनकी निंद्रा भी श्रीकृष्ण में ही होती थी स्वप्न और सुषुप्ति दोनो में ही वे श्रीकृष्ण की मधुर और शांत लीला देखती और अनुभव करती थी.ये गोपियाँ पूर्व जन्म में ऋषि थे जो भगवान की लीलाओ का रसास्वादन करने के लिए ही वृंदावन में गोपी बनकर आये थे.


भक्तो का ह्रदय ही माखन है, जिसे भगवान चुराते है और फिर मटकी फोड देते है क्योकि जब ये मन भगवान का हो गया तो फिर इस देह रूपी मटकी का क्या काम इसलिए इसे भगवान फोड देते है "संत ह्रदय नवनीत सामना"


रात में दही ज़माते समय श्यामसुन्दर की माधुरी छबि का ध्यान करती हुई प्रेममयी प्रत्येक गोपी ये अभिलाषा करते थी कि मेरा दही सुन्दर जमे,उसे विलोकर मै बढि़या-सा और बहुत-सा माखन निकालूँ और उसे उतने ही ऊँचे छीके पर रखूँ,जितने पर श्रीकृष्ण के हाथ आसानी से पहुँच सके.फिर मेरे प्राणधन अपने सखाओं के साथ लेकर हँसते हुए घर में आयेगे,आनन्द में मत्त होकर मेरे आगन में नाचे और मैं किसी कोने में छिपकर इस लीला को अपनी आँखो से देखकर जीवन सफल करुँ और फिर अचानक ही पकड़कर हृदय से लगा लूँ .सभी दृष्टियों से यही सिद्ध होता है कि माखनचोरी, चोरी न थी,भगवान की दिव्य लीला थी असल में गोपियों ने प्रेम की अधिकता से ही भगवान का प्रेम का नाम चोर रख दिया क्योकि वे उनके चित्तचोर तो थे ही.

गोपी किसी का नाम नहीं है गोपी तो एक भाव है जिस तक कोई विरला ही पहुँच सकता है.

  जय जय श्री राधे ...............


Monday, 13 August 2012

राधा श्री राधा रटूं, निसि-निसि आठों याम , जा उर श्री राधा बसै, सोइ हमारो धाम


जब-जब इस धराधाम पर प्रभु अवतरित हुए हैं उनके साथ साथ उनकी आह्लादिनी शक्ति भी उनके साथ ही रही हैं। स्वयं श्री भगवान ने श्री राधा जी से कहा है - "हे राधे! जिस प्रकार तुम ब्रज में श्री राधिका रूप से रहती हो, उसी प्रकार क्षीरसागर में श्री महालक्ष्मी, ब्रह्मलोक में सरस्वती और कैलाश पर्वत पर श्री पार्वती के रूप में विराजमान हो।" भगवान के दिव्य लीला विग्रहों का प्राकट्य ही वास्तव में अपनी आराध्या श्री राधा जू के निमित्त ही हुआ है। श्री राधा जू प्रेममयी हैं और भगवान श्री कृष्ण आनन्दमय हैं। जहाँ आनन्द है वहीं प्रेम है और जहाँ प्रेम है वहीं आनन्द है। आनन्द-रस-सार का धनीभूत विग्रह स्वयं श्री कृष्ण हैं और प्रेम-रस-सार की धनीभूत श्री राधारानी हैं अत: श्री राधा रानी और श्री कृष्ण एक ही हैं। श्रीमद्भागवत् में श्री राधा का नाम प्रकट रूप में नहीं आया है, यह सत्य है। किन्तु वह उसमें उसी प्रकार विद्यमान है जैसे शरीर में आत्मा। प्रेम-रस-सार चिन्तामणि श्री राधा जी का अस्तित्व आनन्द-रस-सार श्री कृष्ण की दिव्य प्रेम लीला को प्रकट करता है। श्री राधा रानी महाभावरूपा हैं और वह नित्य निरंतर आनन्द-रस-सार, रस-राज, अनन्त सौन्दर्य, अनन्त ऐश्‍वर्य, माधुर्य, लावण्यनिधि, सच्चिदानन्द स्वरूप श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करती हैं। श्री कृष्ण और श्री राधारानी सदा अभिन्न हैं। श्री कृष्ण कहते हैं - "जो तुम हो वही मैं हूँ हम दोनों में किंचित भी भेद नहीं हैं। जैसे दूध में श्‍वेतता, अग्नि में दाहशक्ति और पृथ्वी में गंध रहती हैं उसी प्रकार मैं सदा तुम्हारे स्वरूप में विराजमान रहता हूँ।"

Wednesday, 8 August 2012

''श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ''

इस वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार 09 अगस्त 2012 को स्मार्तों का व्रत है और 10 अगस्त 2012 को वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा मनाया जाएगा.श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरापहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।

Tuesday, 7 August 2012

बुधवार का व्रत


एक समय किसी नगर में एक बहुत ही धनवान साहुकार रहता था. साहुकार का विवाह नगर की सुन्दर और गुणवंती लड़की से हुआ था. एक बार वो अपनी पत्नी को लेने बुधवार के दिन ससुराल गया और पत्नी के माता-पिता से विदा कराने के लिए कहा. माता-पिता बोले- बेटा आज बुधवार है. बुधवार को किसी भी शुभ कार्य के लिए यात्रा नहीं करते. लेकिन वह नहीं माना और उसने वहम की बातों को न मानने की बात कही.
दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा प्रारंभ की. दो कोस की यात्रा के बाद उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया. वहां से दोनों ने पैदल ही यात्रा शुरू की. रास्ते में पत्नी को प्यास लगी तो साहुकार उसे एक पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने के लिए चला गया. थोड़ी देर बाद जब वो कहीं से जल लेकर वापस आया तो वह बुरी तरह हैरान हो उठा, क्योंकि उसकी पत्नी के पास उसकी ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा था. पत्नी भी साहुकार को देखकर हैरान रह गई. वह दोनों में कोई अंतर नहीं कर पाई. साहुकार ने उस व्यक्ति से पूछा- तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो. साहुकार की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा- अरे भाई, यह मेरी पत्नी है.
मैं अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा कर लाया हूं, लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?
साहुकार ने लगभग चीखते हुए कहा- तुम जरुर कोई चोर या ठग हो. यह मेरी पत्नी है. मैं इसे पेड़ के नीचे बैठाकर जल लेने गया था. इस पर उस व्यक्ति ने कहा- अरे भाई, झूठ तो तुम बोल रहे हो. पत्नी को प्यास लगने पर जल लेने तो मैं गया था. मैं तो जल लाकर अपनी पत्नी को पिला भी दिया है. अब तुम चुपचाप यहां से चलते बनो नहीं तो किसी सिपाही को बुलाकर तुम्हें पकड़वा दूंगा.
दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगे. उन्हें लड़ते देख बहुत से लोग वहां एकत्र हो गए. नगर के कुछ सिपाही भी वहां आ गए. सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए. सारी कहानी सुनकर राजा भी कोई निर्णय नहीं कर पाया. पत्नी भी उन दोनों में से अपने वास्तविक पति को नहीं पहचान पा रही थी. राजा ने उन दोनों को कारागार में डाल देने को कहा. राजा के फैसले को सुनकर असली साहुकार भयभीत हो उठा. तभी आकाशवाणी हुई- साहुकार तूने माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया. यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है.
साहुकार ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की कि हे भगवान बुधदेव मुझे क्षमा कर दीजिए. मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई. भविष्य में अब कभी बुधवार के दिन यात्रा नहीं करूंगा और सदैव बुधवार को आपका व्रत किया करूंगा. साहुकार की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया. तभी दूसरा व्यक्ति राजा के सामने से गायब हो गया. राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देखकर हैरान हो गए. भगवान बुधदेव् की अनुकम्पा से राजा ने साहुकार और उसकी पत्नी को सम्मानपूर्वक विदा किया.
कुछ दूर चलने पर रास्ते में उन्हें बैलगाड़ी मिल गई. बैलगाड़ी का टूटा हुआ पहिया भी जुड़ा हुआ था. दोनों उसमें बैठकर नगर की ओर चल दिए. साहुकार और उसकी पत्नी दोनों बुधवार का व्रत करते हुए आनंदपूर्वक जीवन-यापन करने लगे. भगवान बुधदेव की अनुकम्पा से उनके घर में धन-संपत्ति की वर्षा होने लगी. जल्द ही उनके जीवन में खुशियां ही खुशियां भर गई. बुधवार का व्रत करने से स्त्री-पुरुष के जीवन में सभी मंगलकामनाएं पूरी होती है...


Sunday, 5 August 2012

श्री कृष्ण

 भगवान श्री कृष्ण वास्तव में पूर्ण ब्रह्म ही हैं। उनमें
सारे भूत, भविष्य, वर्तमान के अवतारों का समावेश है। भगवान श्री कृष्ण
अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त बल, अनन्त यश, अनन्त श्री, अनन्त ज्ञान और अनन्त
वैराग्य की जीवन्त मूर्ति हैं। वे कभी विष्णु रूप से लीला करते हैं, कभी
नर-नारायण रूप से तो कभी पूर्ण ब्रह्म सनातन रूप से। सारांश ये है कि वे सब
कुछ हैं, उनसे अलग कुछ भी नहीं। अपने भक्तों के दुखों का संहार करने के
लिये वे समय-समय पर अवतार लेते हैं और अपनी लीलाओं से भक्तों के दुखों को
हर लेते हैं। उनका मनोहारी रूप सभी की बाधाओं को दूर कर देता है।

Saturday, 4 August 2012

भगवान ने मिट्टी क्यों खायी


भगवान श्री कृष्ण कि दो पत्नियाँ बताई गई है - एक तो श्री देवी अर्थात लक्ष्मी जी और दूसरी भू देवी. जब भगवान लीला करने के लिए वृंदावन में अवतरित हुए, तो जब भगवान पहली बार भूमि पर पैर रखा क्योकि अब तक बाल कृष्ण चलना नहीं सीखे थे, तो पृथ्वी भगवान से बोली प्रभु ! आज आपने मुझ पर अपने चरण कमल रखकर मुझे पवित्र कर दिया. जब भगवान अपनी पत्नी भू देवी जी से बात करते, तो कोई ना कोई आ जाता, तो भगवान ने झट मिटटी का छोटा-सा टुकड़ा उठाया और मुख में रख लिया और बोले कि पृथ्वी अब तुम मुझसे, मेरे मुख में ही बात कर सकती हो,पृथ्वी का मान बढाने के लिए भगवान ने उनका भक्षण किया.


दूसरा कारण यह था कि श्रीकृष्ण के उदर में रहने वाले कोटि-कोटि ब्रह्माण्डो के जीव ब्रज-रज, गोपियों के चरणों की रज-प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो रहे थे. उनकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए भगवान ने मिटटी खायी.

भगवान स्वयं ही अपने भक्तो की चरण-रज मुख के द्वारा अपने हृदय में धारण करते है.क्योकि भगवानने तो स्वयं ही कहा है कि मै तो अपने भक्तो का दास हूँ जहाँ से मेरे भक्त निकलते है तो मै उनके पीछे पीछे चलता हूँ और उनकी पद रज अपने ऊपर चढ़ाता हूँ क्योकि उन संतो गोपियों कि चरण रज से मै स्वयं को पवित्र करता रहता हूँ                                                                                            

                                                              ( sanzay mehta )

भगवान कृष्ण नील वर्ण के क्यों हैं

भगवान कृष्ण नील वर्ण के क्यों हैं
जब भी हम भगवान कृष्ण या राम चन्द्र जी के दर्शन करते है तो अक्सर मन में ये बात आती है कि भगवन कृष्ण नील वर्ण के क्यों हैं ?'भगवान ने गीता में स्वयं ही कहा है हे अर्जुन एक मेरा शरणागत हो जा में हर पाप से मुक्ति दूँगा शोक न कर मेरी भक्ति में खो जा'' संत कहते है कि जब कोई भक्त भगवान के पास जाता है और अपने आप को उन्हें समर्पित कर देता है तो भगवान उसके समस्त पापों को ले लेते है.और पाप का स्वरुप काला है. जब कोई भक्त भगवान को अपने पाप देता है तो पाप का अस्तित्व रखने के लिए भगवान कुछ काले हो गए.जैसे भगवान शिव जी ने जब समुद्र मंथन से निकले विष को पिया और उसे गले में धारण कर लिया तो विष के अस्तित्व रखने के लिए उसकी मर्यादा के लिए उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ हो गए उनका एक नाम नीलकंठेश्वर हो गया.कही कही ऐसा भी कहते है कि जल समुह अथाह अनंत गहराइयों और विस्तार को

लिए हुए होता है तब उसमे नीलिमा झलकती है. ऐसे ही निर्मल प्रेम के सागर श्री कृष्ण, आदि -अनंत विस्तार लिए हुए हैं. यही कारण है कि श्री कृष्ण नील वर्ण हैं.''राम के नीले वर्ण और कृष्ण के काले रंग के पीछे एक दार्शनिक रहस्य है। भगवानों का यह रंग उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। दरअसल इसके पीछे भाव है कि भगवान का व्यक्तित्व अनंत है। उसकी कोई सीमा नहीं है, वे अनंत है। ये अनंतता का भाव हमें आकाश से मिलता है। आकाश की कोई सीमा नहीं है। वह अंतहीन है। राम और कृष्ण के रंग इसी आकाश की अनंतता के प्रतीक हैं.
भक्तजन कहते है कि जब भगवान ने कालिया का दमन किया तो उसके विष का मान रखने के लिए वे कुछ संवारे हो गए. यशोदा जी से जब बाल कृष्ण पूछते मैया! तु गोरी है,नंद बाबा भी गोरे है, दाऊ भी गोरे है,फिर मै क्यों काला हूँ ? तो यशोदा जी कहती लाला ! कि काली अन्धयारी रात में तेरा जन्म हुआ, रात काली है. इसलिए तु काला है तूने काली पद्मगंधा गाय का दूध पिया है. इसलिए काला है. भगवान का एक नाम है श्याम सुन्दर कितना प्यारा नाम है ,जो काले रंग को भी सुन्दर बना दे,श्याम अर्थात काला और सुन्दर.जो गोरा होता है उसे तो सभी सुन्दर कहते है,पर हमारे श्याम सुन्दर तो ऐसे है जो काले होने पर भी सुन्दर है.
अब बोलिए जय श्री राधे. जय माता दी जी . जय माँ राज रानी. जय माँ दुर्गे