Friday, 26 April 2013
Wednesday, 24 April 2013
!!!यहाँ भी सुखी वहां भी सुखी!!!
एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से कहा, 'मुझे इन चार प्रश्नों के जवाब दो। जो यहां हो वहां नहीं, दूसरा- वहां हो यहां नहीं, तीसरा- जो यहां भी नहीं हो और वहां भी न हो, चौथा- जो यहां भी हो और वहां भी।'मंत्री ने उत्तर देने के लिए दो दिन का समय मांगा। दो दिनों के बाद वह चार व्यक्तियों को लेकर राज दरबार में हाजिर हुआ और बोला, 'राजन! हमारे धर्मग्रंथों में अच्छे-बुरे कर्मों और उनके फलों के अनुसार स्वर्ग और नरक की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह पहला व्यक्ति भ्रष्टाचारी है, यह गलत कार्य करके यद्यपि यहां तो सुखी और संपन्न दिखाई देता है, पर इसकी जगह वहां यानी स्वर्ग में नहीं होगी। दूसरा व्यक्ति सद्गृहस्थ है। यह यहां ईमानदारी से रहते हुए कष्ट जरूर भोग रहा है, पर इसकी जगह वहां जरूर होगी। तीसरा व्यक्ति भिखारी है, यह पराश्रित है। यह न तो यहां सुखी है और न वहां सुखी रहेगा। यह चौथा व्यक्ति एक दानवीर सेठ है, जो अपने धन का सदुपयोग करते हुए दूसरों की भलाई भी कर रहा है और सुखी संपन्न है। अपने उदार व्यवहार के कारण यह यहां भी सुखी है और अच्छे कर्म करन से इसका स्थान वहां भी सुरक्षित है।'
Tuesday, 23 April 2013
भगवान् मायापति है, इस हेतु भगवान् के नाम के साथ उनकी माया का भी नाम होना आवश्यक है। शक्ति शक्तिमान से भिन्न नहीं है और ना वह कभी शातिमान को छोड़कर रह ही सकती है। दोनों का नाम एक साथ मिलकर उच्चारण करने की प्रथा प्राय: सभी सम्प्रदायों में देखि जाती है। नारायण जी ने नारद जी से कहा है। कि प्रकृति जगत की माता है तथा पुरष जगत के पिता है। तीनो लोको की माता का दर्जा पिता से सौगुना अधिक है, इससे 'हे राधाकृष्ण , हे गौरीशंकर हे सीताराम' ऐसे प्रयोग वेदों में मिलते है। 'हे कृष्णराधे , हे ईश्गौरी , हे रामसीता ' यह कोई नहीं कहता है। जो पहले पुरष के नाम का उच्चारण करता है, वह मनुष्य वेदवाक्य का उल्लंघन करनेवाला पापी होता है। जो आदि में राधा का नाम लेकर पश्चात परात्पर कृष्ण का नाम लेता है, वही पंडित , योगी अनायास ही गोलोक को प्राप्त करता है .भगवान् का नाम चलते-फिरते, दिन-रात , उठते-बैठते, जैसे हो वैसे ही जपना चाहिए इसमें कोई बाधा नहीं है। नाप-जप में किसी नियम-संयम की आवश्यकता नहीं है, और देश-काल का भी विचार नहीं है। मनुष्य केवल राम -नाम के कीर्तन से मुक्त हो जाता है। यज्ञ में, दान में, स्नान में, तहत जप में भी काल का विचार है। किन्तु विष्णु के कीर्तन में काल का विधान बिलकुल नहीं है। घूमता हुआ, बैठा हुआ, सोता हुआ, पीता हुआ, खाता हुआ, और जपता हुआ कृष्ण नाम के संकीर्तन मात्र से मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है। बैठे हुए, सोते हुए, खाते हुए, खेलते हुए तथा चलते-फिरते सदा राम का ही चिंतन करते रहना चाहिए।
Wednesday, 3 April 2013
क्यों पीया था शिव ने कालकूट विष?
देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने
अपने कण्ठ में धारण किया
था। विष के प्रभाव से उनका कण्ठ नीला पड़ गया और वे नीलकण्ठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
विद्वानों का मत है कि समुद्र मंथन एक प्रतीकात्मक घटना है। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मथना, विचारों का मंथन करना। मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं उन्हें मथकर निकालना और अच्छे विचारों को अपनाना। हम जब अपने मन से विचारों को निकालेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार निकलेंगे।
यही विष हैं, विष बुराइयों का प्रतीक है। शिव ने उसे अपने कण्ठ में धारण किया। उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव का विष पान हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। हमें बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिए।
शिव द्वारा विष पान हमें यह सीख भी देता है कि यदि कोइ बुराई पैदा हो रही हो तो उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने देना चाहिए।
था। विष के प्रभाव से उनका कण्ठ नीला पड़ गया और वे नीलकण्ठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
विद्वानों का मत है कि समुद्र मंथन एक प्रतीकात्मक घटना है। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन को मथना, विचारों का मंथन करना। मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं उन्हें मथकर निकालना और अच्छे विचारों को अपनाना। हम जब अपने मन से विचारों को निकालेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार निकलेंगे।
यही विष हैं, विष बुराइयों का प्रतीक है। शिव ने उसे अपने कण्ठ में धारण किया। उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव का विष पान हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। हमें बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिए।
शिव द्वारा विष पान हमें यह सीख भी देता है कि यदि कोइ बुराई पैदा हो रही हो तो उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने देना चाहिए।
Tuesday, 26 March 2013
..........'' आप सभी को हमारी मंगल कामनाओं के साथ .होली की बहुत बहुत बधाई ''..............
"लाल" आपके गालों के लिए...."काला" आपके बालों के लिए...
"नीला" आपके आँखों के लिए..."पीला" आपके हाथों के लिए...
"गुलाबी" आपके सपनों के लिए...."सफेद" आपके मन के लिए....
"हरा" आपके जीवन के लिए....
"होली" के इन सात रंगों के साथ"जिंदगी" रंगीन हो ...
सभी को सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ....
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