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Thursday, 13 December 2012

'' स्त्रियाँ क्योँ लगाती हैँ माँग मेँ सिन्दूर ''



स्त्रियाँ क्योँ लगाती हैँ माँग मेँ सिन्दूर और इसकी वैज्ञानिकता क्या?

(1)भारतीय वैदिक परंपरा खासतौर पर हिंदू समाज में शादी के बाद महिलाओं को मांग में सिंदूर भर
ना आवश्यक हो जाता है। आधुनिक दौर में अब सिंदूर की जगह कुंकु और अन्य चीजों ने ले ली है। सवाल यह उठता है कि आखिर सिंदूर ही क्यों लगाया जाता है। दरअसल इसके पीछे एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है। यह मामला पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा है। सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है।

यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इसमें पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाहके बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं।पारा एकमात्र ऐसी धातु है जो तरल रूप में रहती है। यह मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है।


(2)मांग में सिंन्दूर भरना औरतों के लिए सुहागिन होने की निशानी माना जाता है। विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग मे सिंदूर भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं।

इसके बाद विवाहिता पति के जीवित रहने तक आजीवन अपनी मांग में सिन्दूर भरती है। हिंदू धर्म के अनुसार मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है। सिंदूर नारी श्रंगार का भी एक महत्तवपूर्ण अंग है। सिंदूर मंगल-सूचक भी होता है। शरीर विज्ञान में भी सिंदूर का महत्त्व बताया गया है।

सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होनेके कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पडती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है, वह स्थान ब्रारंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है।
सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है। सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी स्त्री के दोष निवारण के लिए मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी गई है।

Monday, 10 December 2012



भारतीय विद्यानों ने सात लोगों को चिरंजीवी माना है :-
                         अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांन विभीषण।कृप: परशुराम सप्तैते चिरंजीवीतः||
अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेद व्यास, हनुमान , विभीषण , कृपाचार्य व परुशाराम को चिरंजीवी माना गया है | इसी श्रृंखला में हनुमान जी का नाम सबसे पहले आता है क्योंकि हनुमान जी का लक्ष्य इनमे सबसे बडा है, बल्कि अनन्त है। उसे एक सामान्य मानव जीवन अवधि तो क्या ऊपर वर्णित दीर्घायु में भी प्राप्त करना संभव नहीं। यह तो तभी संभव है जब प्राणी अनन्त समय तक अहर्निश सशरीर प्रयास रत रहे। अब प्रश्न उठता है कौन सा है वह लक्ष्य है व क्यों होती है आवश्यकता उसे पाने के लिए अहर्निश प्रयास की | वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के चालीसवें सत्र में इस बारे में प्रकाश डाला गया है। लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञता स्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमान जी श्री राम से याचना करते हैं कि-
              यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय: ||"
अर्थात हे वीर श्रीराम ! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहे।"" इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते है कि-
 एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा  ।
 अर्थात् ""हे कपिश्रेष्ठ। ऎसा ही होगा। इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेगी।"" स्पष्ट है हनुमान जी ने जब श्रीराम कथा के प्रचलित रहने तक शरीर में प्राण रखने की कामना प्रकट की तो श्रीराम ने उन्हें न केवल तब तक उनके शरीर में प्राण रहने का आर्शीवाद दिया अपितु इन लोकों अर्थात् ब्रह्माण्ड के बने रहने तक रामकथा के स्थिर रहने का वचन भी दिया।सीधे शब्दों में कहा जा सकता है कि जब तक यह ब्रह्माण्ड रहेगा रामकथा स्थिर रहेगी और रामकथा की स्थिरता तक हनुमान जी सशरीर विद्यमान रहेगें। राम चरित मानस में माँ जानकी ने भी उन्हें अजर एवं अमर होने का आर्शीवाद दिया है।
                          अजर अमर गुन निधि सुत होहु। करहु बहुत रघुनायक छोहु
स्पष्ट है हनुमान जी 6 चिरंजीवियों से भी आगे बढकर अजर एवं अमर हैं और फिर वे अजर एवं अमर क्यों नहीं हो जब इन्होंने संकल्प लिया है कि -
                            वांछितार्थ प्रदस्यामि भक्तानां राघवस्य तु। सर्वदा जागरूको स्मि, राम कार्य धुरंधर:  ।
श्री राम रहस्योपनिषद में उनकी यह घोषणा है कि वह श्रीराम के भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए संकल्पित एवं मनसा-वाचा-कर्मणा सचेष्ट हैं। वह राम काज करने में न केवल धुरंधर हैं अपितु सदैव सजग एवं क्रियाशील भी हैं। रामकाज प्रारम्भ करने पर उसे पूर्ण किये बिना विश्राम लेना उन्हें तनिक भी पसन्द नहीं।
उनकी रामकथा सुनने की आतुरता एवं रामकाज के प्रति उत्साह की झलक हमें हर युग में मिलती है। त्रेता युग में दशरथ पुत्र श्रीराम की सेवा में अपलक समर्पित हैं तो द्वापर में अर्जुन के रथ के ध्वज पर आसीन होकर महाभारत के चक्षुदर्शी साक्षी है। महाभारत की समाप्त पर भीम के बल दर्प को दूर करने के लिए वृद्ध बानर के रूप में प्रस्तुत हैं तो कलियुग में भक्त कवि तुलसीदास को चित्रकूट के घाट पर श्रीराम के दर्शन कराने के लिए विप्ररूप में उपस्थित हैं। ये कुछ घटनाएं मात्र उदाहरण स्वरूप हैं वरना वे प्रतिदिन उन करोडों लोगों की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहायता करते हैं जो श्रीराम का स्मरण करते हैं और हाँ वे उनके सामने सशरीर प्रकट होने को भी आतुर हैं जो उन्हें अपने दृढ संकल्प, अगाध श्रद्घा एवं पूर्ण समर्पण से प्राप्त करने की क्षमता एवं पात्रता रखते हैं।


'' भगवान के चौबीस अवतार ''



 श्रीमद्भागवत कथा मे सुना ......सुबह शाम भगवान के चौबीस अवतारों का नामों का स्मरण करने से दुःख और क्लेश से मुक्ति मिलती है ।पुराणानुसार चौबीस अवतार कहे जाते हैं।
सनकादि ऋषि: (ब्रह्मा के चार पुत्र)
नारद
वाराह
मत्स्य
यज्ञ (विष्णु कुछ काल के लिये इंद्र रूप में)
नर-नारायण
कपिल
दत्तात्रेय
हयग्रीव
हंस पुराण।हंस
पृष्णिगर्भ
ऋषभदेव
पृथु
नृसिंह
कूर्म
धनवंतरी
मोहिनी
वामन
परशुराम
राम
व्यास
कृष्ण
बलराम
गौतम बुद्ध
कल्कि

Sunday, 9 December 2012

'' चरणामृत का क्या महत्व है? ''



चरणामृत का क्या महत्व है?
अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की.कि चरणामृतका क्या महत्व है शास्त्रों में कहा गया है
                अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
                विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप- व्याधियोंका शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता"जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.
जब भगवान का वामन अवतार हुआ,और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप लिए जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे मेंऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडलु में से जल लेकरभगवान के चरण धोए और फिर चरणामृतको वापस अपनेकमंडल में रख लिया.वह चरणामृत गंगा जी बन गई,जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है,ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की.जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी .जब हम बाँके बिहारी जीकीआरती गाते है तो कहते है -
                           "चरणों से निकली गंगा प्यारी , जिसने सारी दुनिया तारी "
धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवनकिया जाता है।
चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है।कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं चिकित्सकीय भी है।चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है।आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है।उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है।तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है।कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं।
चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।कहते हैंइससेविचारोंमेंसकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है।इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।..



'' हमेशा अच्छा करो ''


एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहां से ...गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी ,वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे कोई भी ले सकता था .एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और वजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बडबडाता "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा ,वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा "
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि "कितना अजीब व्यक्ति है ,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने क्या क्या बडबडाता रहता है ,
मतलब क्या है इसका ".एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी ".और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली "हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी ,
हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा " बडबडाता हुआ चला गया इस बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है .हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था .महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी.
शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है ,वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है ,
अपने बेटे  को अपने सामने खड़ा देखती है.वह पतला और दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था ,भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा,उसने कहा, "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं एक मील दूर है, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर. मैं मर गया होता,
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था ,उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया,भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे ,  मैंने उससे खाने को कुछ माँगा ,उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि "मैं हर रोज यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो " .जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे का सहारा लीया ,उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था.अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौतऔर इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।

" निष्कर्ष "
~हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या न हो .
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Friday, 7 December 2012

यदि कर्म का फल तुरन्त नहीं मिलता तो इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि उसके भले-बुरे परिणाम से हम सदा के लिए बच गयें । कर्म-फल एक ऐसा अमिट तथ्य है जो आज नहीं तो कल भुगतना अवश्य ही पड़ेगा । कभी-कभी इन परिणामों में देर इसलिये होती है कि ईश्वर मानवीय बुद्धि की परीक्षा करना चाहता है कि व्यक्ति अपने कर्तव्य-धर्म समझ सकने और निष्ठापूर्वक पालन करने लायक विवेक बुद्धि संचित कर सका या नहीं । जो दण्ड भय से डरे बिना दुष्कर्मों से बचना मनुष्यता का गौरव समझता है और सदा सत्कर्मों तक ही सीमित रहता है, समझना चाहिए कि उसने सज्जनता की परीक्षा पास कर ली और पशुता से देवत्व की और बढऩे का शुभारम्भ कर दिया ।,,,,,,,,,,,,,





भगवान से जो मदद चाहता है उसे मदद मिलती है। जो यह प्रार्थना करता है कि हे भगवान् ! मेरा मन निरन्तर भजन-ध्यान में लगा रहे तो उसे भगवान् मदद देते हैं। सामान्य मदद तो सभी को है किन्तु  विशेष मदद जो चाहता है, उसे दी जाती है। इसलिये उनसे प्रार्थना करनी चाहिये जिससे कि वह स्थिति छूटे नहीं। जिसका ऐसा विश्वास होता कि मैं भगवान् की शरण हूँ-मेरी धारणाको दृढ़ और अन्तःकरण शुद्धि भगवान् ही करते हैं, उसकी हो जाती है। एक सज्जन चाहते हैं कि मैं अमुक आज्ञानुकूल चेष्टा करूँ, कभी-कभी कुछ चेष्टा करते भी हैं पर मौका पड़ने पर पीछे हट जाते हैं तो यही समझना चाहिये कि उसका इस बातमें पूरा विश्वास नहीं है कि चाहे प्राण भले ही चले जायँ इनकी आज्ञा ही पालनीय है। अगर भगवान में पूरा विश्वास करके भगवान् से मदद माँगे तो भगवान इसके लिये भी मदद दे सकते हैं।,,,,,,,,,,,