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Tuesday, 16 October 2012

'' शैलपुत्री ''



1. शैलपुत्री
(ध्यान मंत्र)
वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रा.र्धकृतशेखराम् |
वृषारुढ़ां शूलधरां यशस्विनीम् ||
अर्थात्- देवी वृषभ पर स्थित हैं, इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बांए हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है | नवरात्र के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत सविधि शैलपुत्री का पूजन व जाप मंत्र करना चाहिए |
जप मंत्र
                   ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नमः
अर्थात्- शैलपुत्री देवी का विवाह शंकरजी से ही हुआ | पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी वह शिवजी का अर्द्धांगिनी बनीं | नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं | नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है और यहीं से दुर्गा की योगसाधना प्रारम्भ होती है |



Monday, 15 October 2012

शरद नवरात्रों के शुभ अवसर पर

शरद नवरात्रों के शुभ अवसर पर '' जागरण एवं भागवत परिवार '' की तरफ से आप सभी को बहुत बहुत बधाई ...........


Saturday, 13 October 2012

केवट और भगवान


  जब केवट प्रभु के चरण धो चूका तो भगवान कहते है - भाई ! अब तो गंगा पार करा दे, इसपर केवट कहता है प्रभु नियम तो आपको पता ही है कि जो पहले आता है उसे पहले पारउतारा जाता है इसलिए प्रभु अभी थोडा और रुको. भगवान कहते है -भाई ! यहाँ तो मेरे सिवा और कोई दिखायी नहीं देता इस घाट पर तो केवलमै ही हूँ फिर पहले किसे पार लगना है.?
 केवट बोला - प्रभु! अभी मेरे पूर्वज बैठे हुए है जिनको पार लगाना है.झट गंगा जी मेंउतरकर प्रभु के चरणामृत से अपने पूर्वजो का तर्पण करता है,धन्य है केवट जिसने अपना,अपने परिवार और सारे कुल का उद्धार करवाया.फिर भगवान को नाव में बैठाता है,दूसरे किनारे तक ले जाने से पहले फिर घुमाकर वापसले जाता है,जब बार-बार केवट ऐसा करता है तो प्रभु पूछतें हैं  -भाई बार बार चक्कर क्यों लगवाता हैमुझे चक्कर आने लगे हैं |केवट कहता है - प्रभु ! यही तो मै भी कह रहा हूँ | ८४ लाख योनियों के चक्कर लगातेलगाते मेरी बुद्धि भी चक्कर खाने लगी है, अब और चक्कर मत लगवाओ. गंगा पार पहुँचकर केवट प्रभु को दंडवत प्रणाम करता है | उसे दंडवत करते देख भगवान कोसंकोच हुआ कि मैंने इसे कुछ दिया नहीं.
                   "केवट उतरि दंडवत कीन्हा,प्रभुहि सकुच एहि नहि कछु दीन्हा"
कितना विचित्र द्रश्य है जहाँ देने वाले को संकोच हो रहा है और लेने वाला केवट उसकीभी विचित्र दशा है कहता है-
                      "नाथ आजु मै काह न पावा मिटे दोष दुःख दारिद्र दावा
                  बहुत काल मै कीन्ह मजूरी आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी"

लेने वाला कहे  बिना लिए ही कह रहा है कि हे नाथ !आज मैंने क्या नहीं पाया मेरे दोषदुःख और दरिद्रता सब मिट गई | आज विधाता ने बहुत अच्छी मजदूरी दे दी |आपकी कृपा से अब मुझे कुछ नहीं चाहिये | भगवान उसे को सोने की अंगूठी देने लगतेहै | केवट कहता है प्रभु उतराई कैसे ले सकता हूँ. हम दोनों एक ही बिरादरी के है औरबिरादरी वाले से मज़दूरी  नहीं लिया करते.
           दरजी, दरजी से न ले सिलाई धोबी, धोबी से न ले धुलाई
           नाई, नाई से न ले बाल कटाई फिर केवट, केवट से कैसे ले उतराई
 आप भी केवट, हम भी केवट, अंतर इतना है हम नदी मे  इस पार से उस पार लगाते है, आप संसारसागर से पार लगाते हो, हमने आपको पार लगा दिया, अब जब मेरी बारी आये तो आप मुझे पारलगा देना |  प्रभु आज तो सबसे बड़ा धनी मै ही हूँ क्योकि वास्तव में धनी कौन है? जिसकेपास आपका नाम है, आपकी कृपा है, आज मेरे पास दोनों ही है. मै ही सबसे बड़ा धनी हूँ.





Thursday, 11 October 2012

'' सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है ? ''

सरस्वती को ही ज्ञान की देवी क्यों माना जाता है ?
माँ सरस्वती विद्या , संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई है. देवीपुराण में सरस्वती को सावित्री, गायत्री, सती, लक्ष्मी और अम्बिका नाम से संबोधित किया गया है, प्राचीन ग्रंथो में उन्हें वाग्देवी , वाणी, शारदा, भारती , वीणापाणी, विद्याधरी , सर्वमंगला आदि नामो से अलंकृत किया गया है, यह सम्पूर्ण संशयो का उच्छेद करने वाली तथा बोधस्वरुप्नी है. इनकी उपासना से सब प्रकार की सिद्धिया प्राप्त होती है. ये संगीतशास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी है, ताल, स्वर , लय, राग-रागिनी आदि का प्रदुभार्व भी इन्ही से हुआ है. सात प्रकार के स्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है, इसलिए ये स्वरात्मिका कहलाती है, सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती है. वीणावादिणी ,सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरनावस्था है, वीणावादन शरीर यंत्र को एकदम स्थैर्य प्रदान करता है. इसमें शरीर का अंग-अंग परस्पर गुंथकर समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है.

सरस्वती के सभी अंग शवेताम्भ है , जिसका तात्पर्य यह है की सरस्वती स्त्वगुनी प्रतिभा स्वरूप है.. इसी गुण की उपलब्धि जीवन का अभीष्ट है, कमल गतिशीलता का प्रतीक है.. यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है... हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने, सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है ..
देवी भागवत के अनुसार, सरस्वती को ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा पूजा जाता है, जो सरस्वती की आराधना करता है, उसमे उनके वहां हंस के नीर-क्षीर-विवेक गुण अपने आप ही आ जाते है, माघ माह में शुकल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है. तब सम्पूर्ण विधि-विधान से माँ सरस्वती का पूजन करने का विधान है. लेखक, कवि, संगीतकार सभी सरस्वती की प्रथम वंदना करते है. उनका विश्वास है की इससे उनके भीतर रचना की उर्जा शक्ति उत्पन्न होती है. इसके आलावा माँ सरस्वती देवी की पूजा से रोग, शोक , चिंताए और मन का संचित विकार भी दूर होता है.
एक समय ब्रह्माजी ने सरस्वती से कहा - 'तुम किसी योग्य पुरष के मुख में कवित्वशक्ति होकर निवास करो' उनकी आज्ञानुसार सरस्वती योग्य पात्र की तलाश में निकल पड़ी. पीड़ा से तड़प रहे एक पक्षी को देखकर जब महर्षि वाल्मीकि ने द्रवीभूत होकर यह श्लोक कहा :---
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा: ।
यत क्रोञ्च्मिथुनदेक्म्व्धी: काममोहितम ।।
वाल्मीकि कि असाधारण योग्यता और प्रतिभा का परिचय पाकर सरस्वती ने उन्ही के मुख में सर्वप्रथम प्रवेश किया. सरस्वती के कृपापात्र होकर मह्रिषी वाल्मीकि जी ही "आदिकवि" के नाम से संसार में विख्यात हुए.
रामायण के एक प्रसंग के अनुसार जब कुम्भकर्ण कि तपस्या से संतुष्ट होकर ब्रह्मा जी उसे वरदान देने पहुंचे , तो उन्होंने सोचा कि यह दुष्ट कुछ भी ना करे, केवल बैठकर भोजन ही करे, तो यह संसार उजड़ जायेगा.. अत: उन्होंने सरस्वती को बुलाया और कहा कि इसकी बुद्धि को भ्रमित कर दो. सरस्वती ने कुम्भकर्ण कि बुद्धि विकृत कर दी.. प्रणाम यह हुआ कि छह माह कि नींद मांग बैठा .. इस प्रकार कुम्भकर्ण में सरस्वती का प्रवेश उनकी मृत्यु का कारण बना  |
अब बोलिए जय माँ सरस्वती. जय माता दी

Tuesday, 9 October 2012

'' अमीर आदमी , गरीब आदमी ''

हर कोई अमीर आदमी को चाहता हैं ! हर कोई अमीर आदमी को अपना बनाना चाहता हैं ! सारे लोग अमीर व्यक्ति के पीछे लगे रहते हैं ! गरीब को कोई नहीं पूछता ! गरीबों से सब नफरत करते हैं ! गरीब आदमी कि कोई मदद नहीं करता ! पर एक बात...हमेशा याद रखना कि भगवान ने हमेशा गरीबों का साथ दिया हैं ! भगवान ने हमेशा गरीब व्यक्ति की मददकी हैं..........
भगवान राम ने गरीब शबरी के झूठे बेर खाए और उसका उद्धार किया !
भगवान कृष्ण ने गरीब कुबजा का रोग दूर किया था ! ---भगवान ने गरीब आम बेचने वाली का भी उद्धारकिया था ! ---भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के दीन हीन गरीब मित्र सुधामा के पाँव अपने आसुओं से धोए और उसके तीन मुट्ठी चावल के बदले तीनोँ लोक उसको देने लगे थे ! ---भगवान कृष्ण ने ही दुरीयोधन का मेवा त्याग कर गरीब विदुर के घर का साग खाया था ! इसलिए मेरे दोस्तों गरीबो से नफरत मत करो ! गरीबो कि हमेशा मदद करो,जो व्यक्ति गरीबो की मदद करता हैं, भगवान उसकी मदद करते हैं और उसकी सभी मनोकामनाओ को पूरा करते हैं और हमेशा याद रखो कि भेदभाव सिर्फइंसान करतें हैं पर भगवान कभी नहीं !
 जय श्री कृष्ण...!



Monday, 8 October 2012

" पारद लक्ष्मी "

 आज बात करेगे - ऐसी " देवी " की - जिसकी जरूरत सभी को है आज भारतवर्ष में तो इसको लेकर खलबली मची हुई है
  जी हां = मै बात कर रहा हु = धन की देवी ="माँ लक्ष्मी " की - आज बताता हूँ - " पारद लक्ष्मी " के बारे में =
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1 = अगर आप ब्यवसायिक समस्याओ - सरकारी समस्याओ से ग्रसित है - तो " ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं " मंत्र का 108 जाप - और प्रत्येक मंत्र के साथ एक - एक लाल फुल चढाते जाये - घी का दीपक - अगरवत्ती जलाना मत भूलियेगा = आर्थिक समस्याओ से मुक्ति तुरंत =
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2 = अगर आपको नोकरी नहीं मिल रही है - और कोई भी काम मिलने में बाधा आ रही है तो - " ॐ श्रीं विघ्न हराय पारदेश्वरी महालक्ष्म्ये नमः " का एक माला जाप " कमलगट्टे " की माला से प्रतिदिन करे =
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3 = अगर आपका प्रमोशन नहीं हो रहा है = " श्रीं ऐं फट क्लीं " की एक माला जाप " कमलगट्टे " की माला से प्रतिदिन करे =
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4 = क्या आप जानते है = माँ लक्ष्मी को दूध से स्नान कराने से शक्ति और बल की प्राप्ति होती है =
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5 = दही का स्नान कराने से संपत्ति में बढ़ोतरी होती है =
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6 = तिल स्नान कराने से धन की प्राप्ति होती है =
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7 = घी का स्नान से आयु - आरोग्य और एश्वर्या की प्राप्ति होती है =
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8 = माँ लक्ष्मी की आराधना में = कमल फुल - कौड़ी - शंख आदि रखना मत भूलियेगा ==




Sunday, 7 October 2012

पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करना आवश्यक क्यों?

ब्रह्मपुराण के मतानुसार अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से पितरों के लिए श्रद्धा पूर्वक किये जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते है, श्राद्ध से ही श्रद्धा कायम रहती है. कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्दभावना की लहरें पहुंचाता है. ये लहरें, तरंगे ना केवल जीवित को बल्कि मृतक को भी तृप्त करती है. श्राद्ध द्वारा मृतात्मा को शांति-सद्गति मोक्ष मिलने की मान्यता के पीछे यही तथ्य है.. इसके आलावा श्राद्धकर्ता को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है
मनुस्मृति में लिखा है. :- मनुष्य श्रद्धावान होकर जो - जो पदार्थ अच्छी तरह विधि पूर्वक पितरो को देता है, वह - वह परलोक में पितरों को आनंद और अक्षेय रूप में प्राप्त होता है .
ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज सभी पितरो को अपने यह यहाँ 

 से छोड़ देते है, ताकि वे अपनी संतान से श्राद्ध के निमित्त भोजन ग्रेहण कर ले. इस माह में श्राद्ध ना करने वालों के पितृ अतृप्त उन्हें शाप देकर पितृ लोक को चले जाते है. इससे आने वाली पीढियो को भारी कष्ट उठाना पडता है, उसे ही पितृदोष कहते है. पितृ जन्य समस्त दोषों कि शांति के लिए पूर्वजों कि मृत्यु तिथि के दिन श्राद्ध कर्म किया जाता है, इसमें ब्राह्मणों को भोजन कराकर तृप्त करने का विधान है, श्राद्ध करने वाले व्याक्ति को क्या फल मिलता है , इस बारे में गरुंडपुराण में कहा गया है :-
श्राद्ध कर्म करने से संतुष्ट होकर पितृ मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, मोक्ष , स्वर्ग, कीर्ति, पुष्ठि, बल, वैभव, पशुधन, सुख, धन और धान्य वृद्धि का आशीष प्रदान करते है.
यमस्मृति 36.37 में लिखा है कि पिता, दादा और परदादा ये तीनो ही श्राद्ध की ऐसे आशा करते है , जैसे वृक्ष पर रहते हुए पक्षी वृक्ष में फल लगने की आशा करते है, उन्हें आशा रहती है कि शहद , दूध व् खीर से हमारी संतान हमारे लिए श्राद्ध करेगी
देवताओ के लिए जो हव्य और पितरो के लिए कव्य दिया जाता है, ये दोनों देवताओ और पितरो को कैसे मिलता है , इसके सम्बंध में यमराज ने अपनी स्मृति में कहा है :- मन्त्र्वेक्त्ता ब्रह्मण श्राद्ध के अन्न के जितने कौर अपने पेट में डालता है, उन कौरों को श्राद्धकर्ता का पिता ब्राह्मण के शरीर में स्थित होकर पा लेता है.
विष्णुपुराण में लिखा है की श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से केवल पितृगण ही तृप्त नहीं होते, बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, आशिवनिकुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु , वायु, ऋषि , मनुष्य, पशु, पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी तृप्त होते है.
अब बोलिए जय माता दी, जय पितरो की.