हिमाचल के काँगड़ा स्थित माँ ज्वाला जी माँ का मंदिर अपनी आप मे अनूठा
है।यहाँ की मुख्य विशेषता यह है की यहाँ माँ के दरबार मे किसी मूर्ति या
पिंडी के दर्शन नहीं होते। माँ ज्वाला जी के दरबार मे माँ की 9 दिव्य
ज्योतिया बिना किसी घी ,तेल या रुई के , पहाड़ो मे से ऐसे ही जल रही है। माँ
की एक ज्योति नहर के बहते हुए पानी मे भी जल रही है।जो नहर बादशाह अकबर ने माँ
की ज्योति को बुझाने के लिए मंदिर में बनवाई थी।माँ के मंदिर का इत्तिहास बहुत पुराना है।यह मंदिर गुरु गोरख नाथ जी की तपस्या स्थली है। गुरु गोरखनाथ जी यहाँ से माँ के दर्शन पा कर गोरखपुर गए थे जहा उन्होंने समाधी ली।ऐसा कहा जाता है की दक्ष की कन्या सती जो माँ जगदम्बा का रूप थी उनका शव जब शिव जी आकाश मार्ग से ले जा रहे थे।तब विष्णु जी के सुदर्शन
चक्कर से उस शव का खंण्ड करने पर माँ सती की जीभ यहाँ ज्वाला जी मे गिरी
थी।तब से यह स्थान शक्तिपीठ कहलाया।
माँ ज्वाला जी ने अपना पहला दर्शन तमिलनाडु राज्य के एक ब्राह्मण देविदास को स्वप्न मे दिया। माँ ने उन ब्राह्मण से कहा की वह हिमालय पर विराजमान है।ब्राह्मण माँ का आदेश पा कर ज्वालामुखी आ गए। तब देखा की माँ की 9 दिव्या ज्योतिय जमीन मे से निकल रही है। ब्राह्मण वह माँ की सेवा पूजा करने लग गए।माँ के दरबार मे आज भी उन ब्राह्मण के वंशज जो ''भोजक'' जाती के है ,वही सेवा करते है। कुछ समय बाद एक दिन पास के ही एक गाव में एक ग्वाला था। उसकी गाये रोज दूध नहीं देती थी। ऐसा लगता था की उसका दूध कोई निकाल लेता है।एक दिन उस ग्वाले ने निश्चय किया की आज वो उस दूध निकालने वाले को पकड़ के ही रहेगा । ग्वाले ने गाय का पीछा किया तो देखा की ......एक ज्योति आकाश मार्ग से आती है और गाये के नीचे कन्या बन के बैठ जाती है और सारा दूध पी जाती है।ग्वाले ने चुपके से उस दिव्या ज्योति का पीछा किया और ज्वाला जी मे आ पंहुचा।वह माँ की 9 दिव्या ज्योति देख कर हैरान रह गया। उन दिनों हिमाचल जालंधर राज्य में आता था।ग्वाले ने जालंधर के राजा महाराज रणजीत सिंह को यह बात बताई।उस रात ही , महाराज रणजीत सिंह को स्वप्न मे काली माँ ने दर्शन दिए। और कहा की ....''वह स्थान मेरा सिद्ध शक्तिपीठ है।वहाँ तुम मेरा मंदिर बनवाओ।माँ की आज्ञा मान के राजा रणजीत सिंह ने माँ ज्वाला जी का भव्य मंदिर बनवाया। जिस पर समय समय पर अनेक राजाओ ने काम करवाया। ऐसा कहा जाता है की जब माँ ने अकबर का घम्मंड दूर कर दिया था और अकबर भी माँ का सेवक बन गया था,तब अकबर ने भी माँ के भगतो के लिए सराय बनवाए।
अकबर के बाद जहाँगीर काँगड़ा जैसे पहाड़ी राज्य को अपनी राजधानी बनवाना चाहता था।जहाँगीर ने काँगड़ा के किले पर कब्ज़ा भी कर लिया था, काँगड़ा के राजा भी माँ के भक्त थे। वो अपना राज्य जहाँगीर को नहीं देना चाहते थे। जहाँगीर काँगड़ा के किले पर दीवार बनवा रहा था। लेकिन वह दीवार अपने आप ही गिर जाती थी। जहाँगीर ने बहुत कोशिश करी लेकिन दीवार नहीं बन पाई।जहाँगीर के दरबार मे मोजूद हिन्दू दरबारियो को दीवार का यह बार बार आश्चर्यजनक तरीके से बार बार गिरजाना सही नहीं लगा।तब उन्होंने माँ के दरबार से इसकी आज्ञा मांगने को कहा। माँ के दरबार से जहाँगीर को आदेश आया की काँगड़ा उसके लिए सुरक्षित नहीं है।वो यहाँ अपनी राजधानी नहीं बनाये।तब जहाँगीर माँ की आगया मान कर वापस आगरा चला गया।और काँगड़ा का राज्य फिर से काँगड़ा के राजा को लौटा दिया।
माँ ज्वाला जी ने अपना पहला दर्शन तमिलनाडु राज्य के एक ब्राह्मण देविदास को स्वप्न मे दिया। माँ ने उन ब्राह्मण से कहा की वह हिमालय पर विराजमान है।ब्राह्मण माँ का आदेश पा कर ज्वालामुखी आ गए। तब देखा की माँ की 9 दिव्या ज्योतिय जमीन मे से निकल रही है। ब्राह्मण वह माँ की सेवा पूजा करने लग गए।माँ के दरबार मे आज भी उन ब्राह्मण के वंशज जो ''भोजक'' जाती के है ,वही सेवा करते है। कुछ समय बाद एक दिन पास के ही एक गाव में एक ग्वाला था। उसकी गाये रोज दूध नहीं देती थी। ऐसा लगता था की उसका दूध कोई निकाल लेता है।एक दिन उस ग्वाले ने निश्चय किया की आज वो उस दूध निकालने वाले को पकड़ के ही रहेगा । ग्वाले ने गाय का पीछा किया तो देखा की ......एक ज्योति आकाश मार्ग से आती है और गाये के नीचे कन्या बन के बैठ जाती है और सारा दूध पी जाती है।ग्वाले ने चुपके से उस दिव्या ज्योति का पीछा किया और ज्वाला जी मे आ पंहुचा।वह माँ की 9 दिव्या ज्योति देख कर हैरान रह गया। उन दिनों हिमाचल जालंधर राज्य में आता था।ग्वाले ने जालंधर के राजा महाराज रणजीत सिंह को यह बात बताई।उस रात ही , महाराज रणजीत सिंह को स्वप्न मे काली माँ ने दर्शन दिए। और कहा की ....''वह स्थान मेरा सिद्ध शक्तिपीठ है।वहाँ तुम मेरा मंदिर बनवाओ।माँ की आज्ञा मान के राजा रणजीत सिंह ने माँ ज्वाला जी का भव्य मंदिर बनवाया। जिस पर समय समय पर अनेक राजाओ ने काम करवाया। ऐसा कहा जाता है की जब माँ ने अकबर का घम्मंड दूर कर दिया था और अकबर भी माँ का सेवक बन गया था,तब अकबर ने भी माँ के भगतो के लिए सराय बनवाए।
अकबर के बाद जहाँगीर काँगड़ा जैसे पहाड़ी राज्य को अपनी राजधानी बनवाना चाहता था।जहाँगीर ने काँगड़ा के किले पर कब्ज़ा भी कर लिया था, काँगड़ा के राजा भी माँ के भक्त थे। वो अपना राज्य जहाँगीर को नहीं देना चाहते थे। जहाँगीर काँगड़ा के किले पर दीवार बनवा रहा था। लेकिन वह दीवार अपने आप ही गिर जाती थी। जहाँगीर ने बहुत कोशिश करी लेकिन दीवार नहीं बन पाई।जहाँगीर के दरबार मे मोजूद हिन्दू दरबारियो को दीवार का यह बार बार आश्चर्यजनक तरीके से बार बार गिरजाना सही नहीं लगा।तब उन्होंने माँ के दरबार से इसकी आज्ञा मांगने को कहा। माँ के दरबार से जहाँगीर को आदेश आया की काँगड़ा उसके लिए सुरक्षित नहीं है।वो यहाँ अपनी राजधानी नहीं बनाये।तब जहाँगीर माँ की आगया मान कर वापस आगरा चला गया।और काँगड़ा का राज्य फिर से काँगड़ा के राजा को लौटा दिया।
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