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Saturday, 22 August 2015


-----गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस लिखकर मानव जीवन मे उजाला कर दिया है--- अगर कोई व्यक्ति सदगुरु की शरण मे जाकर रामचरितमानस को जीवन मे उतार लेता है तो उसके जीवन मे साक्षात् प्रभु प्रकट हो जाते है---
मनुष्य का मन अगर हरि कथाएं सुनते सुनते थक जाए या बोर हो जाए तो ये समझ लेना की वो सच्चा प्रेमी नही है--
तुलसीदास जी कहते है-- राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ----
तुलसीदास जी कहते है की जो हरि कथा सुनकर बोर हो जाते है उन्होने कथा रस को अच्छी तरह नही पीया लेकिन जो जीवन्मुक्त यानि जो प्रभु से सच्चा प्रेम करते है वो निरंतर कथा श्रवण करते रहते है--
बिलकुल ठीक कहा है की जब मनुष्य भोजन करना नही छोड सका तो भजन क्यो छोड देता है---
जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी। जीवत सव समान तेइ प्रानी--
जो नहिं करइ राम गुन गाना। जीह सो दादुर जीह समाना--
तुलसीदास जी कहते है की जिसके हर्दय मे भक्ति नही है वो ईंसान मुर्दे के समान है ओर जिसकी जीभ हरिनाम नही गाती वो जीभ मेढंक की तरह टर टर करती रहती है----
बिलकुल सत्य कहा है क्योकि भक्ति जब जीवन मे आती है तो मनुष्य के जीवन मे आनंद के साथ साथ उत्साह,,धैर्य,,
संतोष,शांति,,सरलता,,शीतलता आदि गुण आ जाते है --
भक्ति का जीवन मे आना बहुत ही भाग्य की बात है ओर जिसके जीवन मे भक्ति आ जाये उसपर विशेष कृपा होती है क्योकि प्रभु ने कहा है की मै मुक्ति बहुत जल्दी दे देता हूं पर भक्ति नही ओर जिसको भक्ति मिल गयी वो धन्य है--
निर्धना अपि ते धन्या-- वो भाग्यशाली है जिसके जीवन मे भक्ति है क्योकि रुपया पैसा घर गाडी ये सब चाहे कितना भी आ जाये लेकिन प्रभु को बांधने मे समर्थ नही है-- प्रभु सोने या चांदी की जंजीरो से नही बंधेगे ,,प्रभु अगर बंधते है तो आंसुओ की लडियो मे बंध जाते है--
जब हरि लगन लगेगी ओर लगन मे जब अगन आ जायेगी तो आंसु खुद गिरने लगेंगे--
ओर भक्ति मे शर्म भी नही करनी चाहिये क्योकि अगर मीरा शर्म करती तो फिर कैसे वो महलो को छोड पाती- ,,,भक्ति संसार को दिखाने के लिए नही होती,,भक्ति तो प्रभु के लिए होती है-- अगर प्रभु के लिए चलें है तो ये चलना भी भक्ति हो जाती है-- जो क्रिया भगवान से जुड गयी वो भक्ति हो गयी,--
संसार के लिए तो ये जीभ कितना कुछ बोलती रहती है लेकिन प्रभु का नाम गाने मे संकोच करती है ईसलिए विवेकपुर्वक जितना ज्यादा हो सके तो हरिनाम मे ईसका प्रयोग करना चाहिये------ सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी घर भी होय
संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय |----
तुलसीदास जी कहते है की पुत्र,,पत्नी,,ल
क्ष्मी ये सब तो पापी के घर भी होते है लेकिन हरि कथा ओर संत दर्शन ये दुर्लभ है---
जब भी हरि कथा श्रवण करने का मौका मिले तो समझ लेना की प्रभु की बहुत कृपा है---
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता---
भगवान अनंत है ओर उनकी कथा भी अनंत है---
वैसे तो भगवान के 24 अवतारो का वर्णन है शास्त्रो मे लेकिन भगवान के अवतार अनंत ओर अनगिनत है ओर वो कहीं भी ओर किसी भी समय प्रकट हो सकते है---
कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा!-- कलियुग मे हरिनाम की बहुत महिमा है---
जिस तरह अमृत को जानबुझकर पीयो या अनजाने मे अमृत अमर करता है उसी प्रकार भगवान का नाम चाहे जैसे भी लो भगवान का नाम कभी खाली नही जाता---
सांकेतं परिहास्यं वा---
रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी॥
रामकथा कलि बिटप कुठारी।-- भगवान की कथा हाथ की एक ताली है जो संदेह रुपि पक्षियो को उडा देती है---
सत्य है क्योकि हरि कथा का अगर श्रवण मनन चिंतन ओर धारण किया जाए तो मन से सारे संशय निकलकर प्रभु प्रेम जागृत होता है ओर जिस तरह कुल्हाडी से वृक्ष काटा जाता है उसी प्रकार हरिकथा से मनुष्य के जीवन से संसार रुपि विष का मोह दुर होता है---
शेष सब भगवद् कृपा ओर गुरुजी का आशीर्वाद---